SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 28
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ युग-मीमांसा अन्तिम मुगल सम्राट् तो नाममात्र के सम्राट थे । प्रजा की आस्था उन पर से हट चुकी थी। अब वे जनरक्षक नहीं थे । जनता की रक्षा तो दूर, वे स्वयं की रक्षा करने में भी असमर्थ थे । मुगल वंश के अन्तिम सम्राट बहादुरशाह द्वितीय के पतन का दृश्य लोमहर्षक था । उसे अपनी सम्राज्ञी जीनतमहल सहित अंग्रेजों की अजेय शक्ति के सम्मुख आत्मसमर्पण करना पड़ा ।' उसके पतन के साथ ही मुगल साम्राज्य का पतन हो गया। उपर्युक्त परिस्थितियों पर दृष्टिपात करने से यह स्पष्ट विदित हो जाता है कि विक्रम संवत् १७०० से १६०० तक अर्थात् इन दो सौ वर्षों का इतिहास अपने हृदय में अगणित घटनाओं को छिपाये हुए है। यह काल राजनीतिक उथल-पुथल, आन्तरिक संघर्ष, बाह्य आक्रमण, राज्यलिप्सा आदि अनेक प्रवृत्तियों से संकुल रहा है । राज्य के लिए भाई-भाई, पिता-पुत्र, विभिन्न वर्गों और बाह्य शक्तियों द्वारा आक्रमण के रूप में कलह, विद्वष और संघर्ष इस युग की प्रवृत्ति रही है। आलोच्य प्रबन्धकाव्य और राज्य तत्कालीन राजनीतिक परिस्थितियों की पुष्टि आलोच्य प्रबन्धकाव्यों से भी हो जाती है। उनका प्रतिबिम्ब इन प्रबन्धकाव्यों में झलक रहा है, क्योंकि कवि तो सत्य अनुभूतियों का अमर गायक होता है। वह सत्यदर्शी और प्रत्यक्षदर्शी होता है, अतः सामाजिक गतिविधियाँ उसकी दृष्टि से, उसके संवेदनशील हृदय की आँखों से ओझल नहीं रह सकती हैं।' १. देखिए-डॉ. सुरेन्द्रनाथ सेन : द ग्रेट राइजिंग ऑफ १८५७, पृष्ठ ३० । "साहित्य मानव की प्रत्यक्ष एवं परिकल्पित अनुभूतियों का समवेत स्वरूप है । समाज में स्थित जिन व्यापक संवेदनाओं का एक संवेदनशील व्यक्ति अनुभव करता है, उन्हीं को अपने मनोनुकूल व्यंजित करने का प्रयास ही उसे कवि कोटि में ले आता है ।" ---डॉ० अजनारायण सिंह कविवर पद्माकर और उसका युग, पृष्ठ १७ ।
SR No.010270
Book TitleJain Kaviyo ke Brajbhasha Prabandh Kavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy