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________________ ३० जैन कवियों के ब्रजभाषा प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन वरन् राजनीतिक शक्ति को भी झकझोर कर जर्जर कर दिया । अहमदशाह अब्दाली ने भी भारत पर पाँच बार आक्रमण किया । उसका चौथा आक्रमण सर्वाधिक भयंकर आक्रमण था, जिसमें दिल्ली, आगरा और मथुरा आदि कई स्थानों पर भयंकर लूट-पाट और नरसंहार हुआ । उसका अन्तिम आक्रमण १८१७ ई० में हुआ जो पानीपत की तीसरी लड़ाई के नाम से प्रसिद्ध है । इसमें देश की तत्कालीन सर्वोच्च शक्ति (मराठा - शक्ति) को पराजित होना पड़ा और भारत में मराठों का हिन्दू साम्राज्य स्थापित करने का स्वप्न मिट्टी में मिल गया । इधर भारत में अंग्रेजों का आगमन भी हो चुका था । वे यहाँ व्यापार से लाभ उठाने के साथ-साथ यहाँ के शासन में भी हस्तक्षेप करने लग गये थे । क्लाइव द्वारा अर्काट के घेरे की विजय, प्लासी के युद्ध तथा बक्सर के युद्ध की विजय से उनके पैर जमते गये । शाहआलम को बंगाल, बिहार और उड़ीसा की दीवानी अँग्रेजों को विवश दे देनी पड़ी । वारेन हेस्टिग्स ने भारत में अंग्रेजी राज्य का विस्तार किया । तदोपरान्त वेलेजली ने अनेक देशी राजाओं को जीतकर तथा सहायक सन्धि प्रथा का श्रीगणेश कर देशी राज्यों को पूर्ण निःशक्त कर दिया और भारत में ब्रिटिश सत्ता को सर्वोपरि रूप दे दिया। देश की राजनीतिक दुरवस्था से लाभ उठाकर कम्पनी के व्यापारी अंग्रेज भारत के शासनाधीश बन गये ।' बनते भी क्यों नहीं ? १. २. असंख्य निरपराधों के रक्त से अपनी प्यास बुझाकर उसने यह पैशाचिक नर-संहार रोका । तदनन्तर ५८ दिन तक शाही मेहमान बनकर भी उसने मुगलों के तीन सौ वर्षों में संचित अपार धन-वैभव के साथ दिल्ली की जनता के सभी वर्गों को उन्मुक्त होकर लूटा और तब कोहेनूर हीरा तथा मयूर सिंहासन के साथ-साथ अनुमानातीत पुष्कल धन को ऊँटों, गधों और खच्चरों पर लाद कर ले गया । -डॉ० ज्योतिप्रसाद : भारतीय इतिहास पर एक दृष्टि, पृष्ठ ५४१ । देखिए - गोविन्द सखाराम सरदेसाई : मराठों का नवीन इतिहास, पृष्ठ ५०४-५०५ । देखिए - सत्यकेतु विद्यालंकार : भारतीय संस्कृति और उसका विकास, पृष्ठ ५८ २-५८३ ।
SR No.010270
Book TitleJain Kaviyo ke Brajbhasha Prabandh Kavyo ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalchand Jain
PublisherBharti Pustak Mandir
Publication Year1976
Total Pages390
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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