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________________ ६ | जैन कथामाला (राम-कथा) देवों में लब्धिकुमार अथवा उदधिकुमार नाम का एक निकाय है) देवों में देव पर्याय पाई। देव पर्याय प्राप्त होते ही वानर ने अवधिज्ञान से उपयोग लगाया और देखा कि मुनिराज के उपकार के कारण ही मैं पशु से आवली। आवली अपनी विनम्रता के कारण तुम्हें अधिक प्रिय था। एक दिन आवली ने एक गाय का सौदो किया । वह उस गाय को अपने लिए खरीदना चाहता था किन्तु शशि ने गाय वेचने वाले को फुसलाकर स्वयं खरीद ली। इसी बात पर दोनों में झगड़ा हो गया और झगड़े में शशि ने आवली को मार डाला । भव भ्रमण करते हुए शशि का जीव तो मेघवाहन हुआ और आवली का सहस्रलोचन तथा रम्भक संन्यासी के जीव तुम हो ही ! पूर्वभव के वैर के कारण ही सहस्रलोचन अपने शत्रु मेघवाहन का प्राणान्त कर देना चाहता था और उसी जन्म के प्रेम के कारण तुम्हारे हृदय में सहस्रलोचन के प्रति स्नेह-भाव उमड़ रहा है । चक्रवर्ती सगर की जिज्ञासा तो शान्त हो गई किन्तु सभा में उपस्थित राक्षसाधिपति भीम ने सविनय भगवान ने पूछा -सर्वन प्रभु ! मेघवाहन के प्रति मेरे हृदय में भी असीम प्रेम उमड़ रहा है, इसका कारण ? प्रभु ने मन्द स्मित सहित कहा -राक्षसपति ! पूर्वजन्म में तुम विद्युदंष्ट्र नाम के विद्याधर थे। पुष्करवर टीपार्ध के भरतक्षेत्र में स्थित वैताढयगिरि पर कांचनपुर नगर तुम्हारी राजधानी था। तुम्हारा एक पुत्र था—रतिवल्लभ ! उससे तुम्हें प्रगाढ़ प्रेम था। उसी रतिवल्लम का जीव यह मेघवाहन है । भगवान से पूर्वजन्म का सम्बन्ध जानकर भीम ने मेघवाहन को गले से लगा लिया । गद्गद स्वर में बोला--
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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