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________________ ४४६ | जैन कथामाला (राम-कथा) -कहाँ रहते हैं हमारे पिता, हम भी देखें कि वे कैसे हैं ? नारद ने देखा अंकुश के शब्दों में व्यंग्य भी मिश्रित है किन्तु वह मधुर स्वर में वोले -वत्स ! राम अयोध्या में रहते हैं। -कितनी दूर है, वह ? ~यहाँ से एक-सौ साठ योजन दूर। नारदजी इतना कहकर उठ खड़े हुए। राजा वज्रजंघ और पृथु. तथा सम्पूर्ण सभा ने उठकर उनको आदरपूर्वक विदा कर दिया। अंकुश ने अयोध्या जाने की इच्छा प्रकट की तो वज्रजंघ ने तुरन्त स्वीकृति दे दी। वह युवा भानजों की इच्छा का विरोध करके उस समय बात बढ़ाना नहीं चाहता था। उसने चतुराईपूर्वक उनकी इच्छा को दूसरी ओर मोड़ने का प्रयास किया -वत्स ! पहले कुछ देशों को विजय कर लो तव तुम्हारा अयोध्या जाना अधिक उचित रहेगा। ___ अंकुश ने राजा की यह इच्छा स्वीकार कर ली। राजा पृथु की कन्या से विवाह करने के पश्चात कुमार अंकुश, अपने भाई लवण और राजा वज्रजंघ सहित सेना लेकर निकला। ___ मार्ग में अनेक राजाओं को नम्र बनाते हुए वे लोकपुर नगर के पास आये। वहाँ का राजा कुबेरकान्त अभिमानी था तो उसे युद्ध में जीत लिया। लंपाक देश के राजा एककर्ण और विजयस्थली के राजा भातृशत पर विजय प्राप्त की । गंगा नदी के किनारे-किनारे उत्तर दिशा में कैलाश पर्वत की ओर चले तो मार्ग में नन्दनचारु राजा का देश विजित किया। वहाँ से आगे चलकर रूष, कुन्तल, कालांवु, नन्दिनन्दन, सिंहल, शलभ, अनल, शूल, भीम और भूतरवादि . देशों के राजाओं को विजय करते हुए सिन्धु नदी के किनारे आ
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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