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________________ पुत्र-जन्म | ४४५ -मुनिवर ! राजा पृथु अपनी पुत्री का विवाह अंकुश से करने वाले हैं किन्तु....... -किन्तु... .दुविधा क्या है ? -इन्हें अंकुश के वंश का परिचय चाहिए । आप ही बता दीजिए कि उसका वंश क्या है, जिससे इन्हें सन्तोष हो जाये। नारदजी वोले -आदि तीर्थकर ऋषभदेव के वंश के परिचय की भी आवश्यकता आ पड़ी राजा पृथु को ! विस्मित होकर पृथु ने पूछा-कैसे मुनिवर ? मुझे पूरी वात वताइये। -राजा पृथु ! लवण और अंकुश सूर्य वंशोत्पन्न बलभद्र श्रीराम के पुत्र हैं जिनके बल, पराक्रम और गौरव की गाथा भरतक्षेत्र के वच्चे-बच्चे की जवान पर है। इससे अधिक परिचय चाहिए, आपको? - नारदजी ने अंकुश का वंश परिचय दे दिया। लज्जित होकर राजा पृथु बोला -नहीं, देवर्षि नहीं ! अब मुझे पूरा सन्तोष हो गया । मैं तो यह सोच रहा था कि ऐसे पराक्रमी पुत्र किसी साधारण मनुष्य के नहीं हो सकते। . अव जिज्ञासा जाग्रत हुई अंकुश को । उसने प्रश्न किया- . ___-देवपि ! पराक्रमी पिता के जीवित रहते हुए हम यहाँ कैसे आ गये? -दुखद घटना है पुत्र ! तुम्हारी माता के जीवन की । श्रीराम ने जंगल में छुड़वा दिया था सती शिरोमणि सीता को, जवकि वह गर्भवती थी। माता का परित्याग पिता द्वारा-तेवर वदल गये अंकुश के।। किन्तु मनोभाव दवाकर पूछने लगा
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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