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________________ ४१० | जैन कथामाला (राम-कथा)विदेह क्षेत्र के रत्नपुर नगर के अचल चक्रवर्ती की पत्नी हरिणी के गर्भ से प्रियदर्शन नाम का पुत्र हुआ 1 उसकी इच्छा तो वाल्यावस्था में ही प्रव्रज्या ग्रहण करने की थी किन्तु पिता के आग्रह से तीन हजार कन्याओं के साथ विवाह करके गृहवास में रहा। गृहस्थधर्म पालन करते हुए भी चौंसठ हजार वर्ष तक वह संवेगपूर्वक रहा और कालधर्म प्राप्त कर ब्रह्मलोक में देव हुआ। __ धन भी संसार भ्रमण करता हुआ पोतनपुर में अग्निमुख ब्राह्मण की पत्नी शकुना के गर्भ से मृदुमति नाम का पुत्र हुआ । अविनीत होने के कारण पिता ने उसे घर से निकाल दिया। अनेक देश-विदेशों में घूमता हुआ वह सभी कलाओं में चतुर हो गया। जव वह पुनः घर लौटकर आया तो पक्का धूर्त था। द्यूत-क्रीड़ा में उसे कोई जीत नहीं सकता था। द्यूत-क्रीड़ा और धूर्तता से उसने प्रचुर धन का उपार्जन किया। विपुल धन के कुप्रभाव के रूप में उसे वेश्यागमन की भी लत पड़ गई । वसन्तसेना वेश्या के साथ भोग भोगते हुए वृद्धावस्था में उसे धर्मवुद्धि जागी। उसने प्रव्रजित होकर तपस्या की और मरकर ब्रह्मलोक में देव पर्यायः पाई । वहाँ से च्यवकर पूर्वजन्म के कपट-दोष के कारण उसने पशु पर्याय पाई और भुवनालंकार हाथी वना। प्रियदर्शन के जीव ने भी अपना आयुष्य पूर्ण करके भरत के रूप में जन्म लिया। केवली ने राम को सम्बोधित करके कहा -हे राम ! तुम्हारे भाई भरत को देखकर भूवनालंकार को जाति-स्मरण ज्ञान हो गया। इसी कारण उसका मद उतर गया । क्योंकि विवेक जाग्रत होने पर रौद्रता मिट जाती है । ' । अपने पूर्वभव सुनकर भरत की वैराग्य-भावना दृढ़ हो गई। - और. उन्होंने एक हजार राजाओं के साथ प्रव्रज्या ग्रहण कर .
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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