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________________ - भरत और कैकेयो की मोक्ष-प्राप्ति | ४०६ . डालूं अन्यथा यह मुझे मार डालेगा।' पापियों को धर्मात्माओं की सभी क्रियाओं में छल ही दिखाई पड़ता है । श्रीदामा ने पुरोहित की सम्मति से विष देकर राजा को मार डाला। पुरोहित श्रुतिरति भी कुछ काल पश्चात मर गया। दोनों चिरकाल तक विभिन्न योनियों में भ्रमण करते रहे। बहुत लम्बा समय व्यतीत होने के पश्चात राजगृह नगर में कपिल ब्राह्मण की पत्नी सावित्री ने विनोद और रमण दो पुत्रों को जन्म दिया। रमण वेदों का अध्ययन करने के लिए चला गया। कितने ही वर्ष बाद वह वेदाभ्यास करके लौटा तो रात्रि का समय हो चुका था। नगर-रक्षकों ने इसे नगर में प्रवेश नहीं करने दिया। परिणामस्वरूप उसे यक्ष मन्दिर में रात्रि व्यतीत करनी पड़ी। रात्रि के समय विनोद की स्त्री शाखा किसी ब्राह्मण दत्त के संकेत पर वहाँ आई और रमण को दत्त समझकर जगाया । रमण भी उसके साथ रति-क्रिया में लीन हो गया। विनोद भी अपनी स्त्री के पीछेपीछे आया। उनके इस पापाचार को देखकर वह क्रोध में भर गया। उसने रमण को मारना प्रारम्भ कर दिया । रमण भी शान्त न बैठा रहा । इस संघर्ष में दोनों का ही प्राणान्त हो गया। पुनः वे संसार में भटकने लगे। भटकते-भटकते विनोद एक धनाढय श्रेष्ठि का धन नाम का पुत्र हुआ और रमण लक्ष्मी नाम की स्त्री का भूषण नाम का पुत्र । धन की प्रेरणा से भूषण का विवाह बत्तीस श्रेष्ठि कन्याओं से हो गया। एक रात्रि को वह अपने घर के सामने बैठा था कि उसे श्रीधर मुनि का कैवल्योत्सव मनाने जाते हुए देव विमान दिखाई पड़े। उसके हृदय में भी धर्मभावना जगी। वह उठकर चलने लगा, उसी समय एक सर्प ने डस लिया। शुभ परिणामों से मरकर वह कितने ही काल तक शुभयोनियों में जन्म-मरण करता रहा। पश्चात् इसी जम्बूद्वीप के अपर
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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