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________________ भरत और कैकेयो की मोक्ष-प्राप्ति | ४११ ली। चिरकाल तक तपस्या करके उन सवने अव्यय मोक्ष-पद प्राप्त किया। भुवनालंकार हाथी ने भी अनेक प्रकार के अभिग्रह ग्रहण किये और जीवन-भर उनका पालन करता रहा । अन्त समय में उसने अनशन व्रत धारण करके प्राण छोड़े और ब्रह्म देवलोक में देव हुआ। भरत की माता कैकेई ने भी संयम धारण किया और अविनाशी - मोक्ष-पद प्राप्त किया। राम के अनुज भरत के प्रवजित होने के पश्चात प्रजा ने उनसे राज्य ग्रहण करने की प्रार्थना की। किन्तु राम तो राज्य के प्रति निस्पृह थे। उन्होंने आज्ञा दी 'लक्ष्मण वासुदेव है, राज्यतिलक इसका होगा।' आज्ञाकारी लक्ष्मण ने अग्रज का आदेश शिरोधार्य किया और उनका राज्याभिषेक धूमधाम से सम्पन्न हो गया। . -त्रिषष्टि शलाका ७८ वाल्मीकि रामायण में भरत अयोध्या में श्रीराम के साथ ही सर्दह ब्रह्मतेज में विलीन होकर विष्णूधाम प्राप्त करते हैं और विष्णुं में लीन हो जाते हैं। [उत्तरकाण्ड]
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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