SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 373
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सीता को खोज | ३१७ -यह पवनंजय के पुत्र हनुमान महापराक्रमी और हमारे मित्र हैं। सम्पूर्ण विद्याधर जाति में इनके समान दूसरा कोई वीर नहीं है। इसलिए हे स्वामी ! आप इन्हें दूत बनाकर भेजिए। ____अपनी 'लघुता प्रदर्शित करते हुए पवनसुत ने विनम्र स्वर में कहा-- -यहाँ एक से एक सुभट बैठे हैं-नल, नील, अंगद, गव, गवाक्ष, गवय, शरभ, गन्धमादन, द्विविद, मैंद, जंबवान आदि । फिर भी आपने मुझे इस योग्य समझा, मेरा अहोभाग्य ! श्रीराम हनुमान की विनयशीलता से प्रसन्न हो गये। उन्होंने हनुमान को पास बुलाया और अपनी अँगूठी देकर कहा -अंजनीनन्दन ! तुम्हारी विनयशीलता मेरे कार्य को सम्पन्न करने की गारण्टी है । तुम अवश्य सफल होगे । यह मुद्रिका ले जाओ और सीता के समाचार लाकर मुझे दो। -माता सीता से भी कोई निशानी लाऊँ। -हनुमान ने जिज्ञासा प्रकट की। • -वीर ! तुम्हारे शब्द ही विश्वास दिलाने के लिए काफी हैं। और फिर उसके पास आभूषण ही कौन-सा है। एक चूडामणि हैयदि वह स्वेच्छा से दे तो ले आना । ____ 'जो आज्ञा' कहकर हनुमान चलने को तत्पर हुए तो राम ने कहा -पवनसुत ! उसको मेरा सन्देश यह कह देना कि राम तुम्हारी ओर से गाफिल नहीं है। वह शीघ्र ही तुम्हारे संकटों को दूर करेगा। ___ और यह भी कह देना पवनकुमार-कि राम तुम्हारे विरह में पीड़ित है और रात-दिन तुम्हारा ही नाम लेता है। कहते-कहते राम का कण्ठ अवरुद्ध हो गया और नेत्र सजल ।
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy