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________________ ३१६ | जैन कथामाला ( राम कथा ) राम ने जंबवान की बात स्वीकार कर ली । बोले- आप लोग किसी को भी दूत बनाकर भेज दीजिए । जंत्रवान ने फिर ऐतराज किया - किसी को भी नहीं, स्वामी ! लंकापुरी के लिए शक्तिशाली और बुद्धिमान दूत ही आवश्यक है । साधारण पुरुष का काम नहीं । - क्यों ? ---> — इसलिए कि पहले तो लंका में प्रवेश करना ही दुष्कर ! यदि किसी प्रकार प्रवेश भी हो गया तो निकल आना और भी कठिन । लंकापुरी को यम की दाढ़ समझिए । 'एक बात और' - जंववान आगे कहने लगेरावण की सभा में न चला जाय । वह - दूत सीधा अभिमानी पहले विभीषण से मिले । - विभीषण से ही क्यों ? राम ने पूछा । - विभीषण ही राक्षस कुल में सर्वाधिक नीतिमान और सदाचारी पुरुष है । यदि रावण विभीषण की भी बात न माने तो तुरन्त लौट आना चाहिए । लंका में रुकना साक्षात मृत्यु को निमन्त्रण देना - होगा । जंववान इतना कहकर चुप हो गये । अब ऐसे योग्य दूत की खोज होने लगी जो बुद्धिमान, नीति-निपुण, शक्तिशाली और निर्भय हो । सुग्रीव ने सुझाव दिया - 'पवनंजय के पुत्र हनुमान को भेजा जाय ।' पवनसुत के नाम पर सभी एकमत हो गये । सुग्रीव ने श्रीभूति के द्वारा हनुमान को बुलवाया । हनुमान ने आकर राम को प्रणाम किया । सुग्रीव ने उठकर . कहा
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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