SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 352
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६६ / जैन कयामाला (राम-कथा) धनुष पर वाण चढ़ाया श्रीराम ने और शर-संधान कर दिया । एक ही वाण से साहसगति प्राणहीन होकर गिर पड़ा। किष्किधा की जनता, रानी तारा और युवराज चन्द्ररश्मि को इस संशयात्मक स्थिति से छुटकारा मिला। का चरित्र दूसरे ढंग से दिखाया गया है । वह सीता को उसके सतीत्व - पर दृढ़ रहने की प्रेरणा देती है; रावण के : साथ भोग करने की नहीं। (विस्तार के लिए देखिए-'सीता पर उपसर्ग'-का पाद टिप्पण ! मंजरिका नाम की दूती ने अवश्य सीता को रावण में अनुरक्त करने का प्रयास किया था ।) हनुमान से सीता का समाचार पाकर राम ने उन्हें सेनापति वनाया और सुग्रीव को युवराज । इसके बाद अंगद आदि की सम्मति से हनुमान को पुनः दूत वनाकर भेजा गया। तब वे विभीषण से मिले । विभीषण उन्हें साथ लेकर रावण की राजसभा में गया, वहाँ वार्तालाप का कुछ भी फल न निकला तो वापिस लौट आये। उन्होंने रामचन्द्रजी को आकर बता दिया कि रावण से युद्ध अनिवार्य है। . राम चातुर्मास (वर्षावास) करने वहीं टिक गये । (३) इसी समय चित्रकूट वन में किष्किंधा नरेश वाली के दूत ने आकर राम से कहा-'यदि आप सीता को वापिस चाहते हैं तो सुग्रीव हनुमान आदि को सेवा में न रखें। हमारे महाराज वाली अकेले ही आपका मनोरथ पूरा कर देंगे।' किन्तु राम ने उसे प्रत्युत्तर दिया-यदि वाली की यही इच्छा है, , तो वह अपने सर्वश्रेष्ठं हाथी महामेध को मुझे समर्पित करे और मेरा अनुयायी बनकर लंका चले। इसी पर बात आगे बढ़ गई और लक्ष्मण ने युद्ध में वाली को मार डाला। (श्लोक ४६४) सुग्रीव को अपना पद मिल गया।
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy