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________________ नकली मुग्रीव | २९५ राम ने विद्याधर ने कहा -अरे दुष्ट ! विद्यावल से सभी को मोहित करके तू पराई स्त्री को भोगने की इच्छा करता है । अव अपना धनुप सँभाल । विद्याधर थर-थर काँपने लगा। राम के रूप में उसे साक्षात् मृत्यु दिखाई दे रही थी। अपना दाहिना. पैर तो पर्वत पर ही रखा और बायें पैर से सूर्यमण्डल ।। को छूकर अपना शरीर त्रसरेणु के समान बना लिया। तभी से सब विद्याधरों ने इसका नाम अणुमान् रख दिया। यह अनेक शास्त्रों में भी निपुण है। एक बार मैं सम्मेत शिखर पर वन्दना करने गया । दैवयोग से वहाँ नारद मुनि भी आ गये । उनसे मैंने पूछा कि 'मुझे अपना युवराज पद मिलेगा या नहीं।' उन्होंने बताया कि 'श्री रामचन्द्र की पत्नी सीता का हरण लंकापति रावण कर ले गया है। यदि तुम उनका कार्य करोगे तो तुम्हारी इच्छा पूर्ण हो जायगी।' इसीलिए हम दोनों आपके पास आये हैं। (२) यहीं राम हनुमान को अपना दूत बनाकर लंका भेज देते हैं। हनुमान ने लंका में प्रवेश करते ही प्रगर मा धारण कर लिया और उसी रूप में समस्त लंका में घूमकर भीयानो खोज निकाला। वानर रूप रखकर, सीता के सामने प्रगट यम की मुदिका दिखाकर उनका सन्देश दिया और सीता को ATALE लौट आये। नोट-यहाँ देवरमण उद्यान को उजाड़ने, अक्षकुगार बध, से भेंट, रावण की राजसभा में जाना, इन्द्रजित द्वारा नागपा M ur जाना, रावण का मुकुट भंग आदि किसी भी घटना या उतरणमा हाँ, रावण-पत्नी मन्दोदरी की सीता से भेंट का वर्णन यायमादायी
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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