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________________ १२६ | जैन कयामाला (राम-कथा) अंजना निर्दोप थी-अपनी भूल पर हम बहुत पछता रहे हैं किन्तु यह तरीका नहीं है उसे खोजने का । -और मैं करता भी क्या ? सब जगह ढूंढ़ लिया कहीं न मिली तो अपने जीवन का अन्त कर देना ही एकमात्र उपाय मुझे दिखाई दिया। . -नहीं कुमार ! यही एकमात्र उपाय नहीं है। उसे खोजने के उपाय मैंने कर दिये हैं । हजारों विद्याधर उसको खोज रहे हैं। वह अवश्य मिलेगी । तुम धैर्य रखो। पिता के अनेक प्रकार से समझाने पर पुत्र को सान्त्वना मिली। वे दोनों उसी वन में बैठकर अंजना को खोजने के अन्य उपायों पर विचार करने लगे। 1. X खोज में लगे हुए विद्याधरों में से कुछ हनुपुर आ पहुंचे। उन्होंने . राजा प्रतिसूर्य और उसके राजमहल में समाचार दिया कि 'अंजना के विरह में पवनंजय ने चिता-प्रवेश की प्रतिज्ञा की है।' • सुनते ही अंजना के मुख से निकला-'अरे मैं मारी गई और अचेत होकर भूमि पर गिर पड़ी । शीतोपचार से सचेत होने पर विलाप करने लगी -अरे ! यह कैसी विपरीत वात ? पति के साथ पत्नी तो . इसलिए सती होती है कि उसे घोर कष्ट उठाने पड़ते हैं। संसारी और परिवारी उसका तिरस्कार करते हैं, उसके शील भंग का सदैव ही भय रहता है; किन्तु उन्हें यह क्या सूझी? वे तो अनेक पत्नियाँ कर सकते थे। लेकिन इससे यह मालूम पड़ता है कि उनका मेरे प्रति अनन्य प्रेम है। राजा प्रतिसूर्य ने अंजना को आश्वासन देते हुए कहा-पुत्री विलाप छोड़ और पति के पास चलने की तैयारी कर ।
SR No.010267
Book TitleJain Kathamala
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Shreechand Surana
PublisherHajarimalmuni Smruti Granth Prakashan Samiti Byavar
Publication Year1977
Total Pages557
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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