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________________ प्रदूषित हो जायेगा । ये चातुर्वर्ण्य व्यवस्था के बाहर थे। इन जातियों के लोगों के साथ वैवाहिक सम्बन्ध का कोई प्रश्न'2 ही नहीं उठता था। पांस संगीत विद्या और नृत्य में निपुण थे। इस जाति के लोग मनोरंजन का कार्यक्रम प्रस्तुत करते थे73 । वे कुत्तों को लेकर भ्रमण करते थे । वीणा बनाकर 75 जीविकोपार्जन करते थे। उन्हें अपराधियों के सर काटने की जिम्मेदारी सौंपी जाती थी76 | मायंग जैन धर्म में परिवर्तित हो सकते थे77 और जैन साधु भ्रमण के समय उनके घर से भिक्षा ग्रहण कर सकते थे। वासुदेव हिण्डी (द्वि ख.) में उल्लिखित है कि चाण्डाल अपराधियों को फांसी चढ़ाते थे78 । हरिभद्र के अनुसार अनार्य जातियों में शक, यवन, शबर, बर्बरकाय, और गौड़ जातियों का उल्लेख मिलता हैं?91 चाण्डाल, डोम्बलिक, रजक, चर्मकार, शाकुनिक, मत्स्यबन्ध और नापित0 जाति के नामोल्लेख मिलते है 1 | ये सभी जातियां शूद्र जाति के अन्तर्गत आती थीं। शबर और भिल्ल जंगल में रहते थे। इन का अधिपति पल्लीपति कहलाता था । किसी-किसी पल्लीपति का सम्बन्ध अभिजात्य वर्ग के राजा से भी रहता था और उस राजा के अधीनस्थ रह कर अपने राज्य का संचालन करता था। हरिभद्र के आख्यानों के अनुसार शवर प्राय: लूट-पाट किया करते थे । जंगल में इनका राज्य रहता था। पल्लीपति शबरों की देख-भाल करता था तथा लूट के माल में सबसे अधिक भाग उसी का होता था । चाण्डालों का कार्य लोगों को फांसी देना, प्राण लेना तथा इसी प्रकार के अन्य कठोर कर्म करना था। रजक को वस्त्र शोधक भी कहा है85 । वस्त्र साफ करने का कार्य रजक करते थे। नापित अपने कार्य के अतिरिक्त राजा को पाखाना कराने का कार्य भी करते थे । उद्योतन सूरि के पूर्व प्राचीन भारत में वर्ण-व्यवस्था का स्वरुप वैदिक मान्यताओं के अनुरुप था। गुप्तयुग में सामाजिक वातावरण इस प्रकार था कि सिद्धान्तः कर्मणा वर्ण-व्यवस्था (33)
SR No.010266
Book TitleJain Katha Sahitya me Pratibimbit Dharmik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Tiwari
PublisherIlahabad University
Publication Year1993
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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