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________________ “ब्राह्मण क्षत्रियविशां शूद्राणां च परंतप । कर्माणि प्रविभक्तानि स्वभाव प्रभवैगुणैः" ।। (भगवत् गीता अ. 18, श्लोक 41) “हे परंतप अर्जुन । ब्राह्मण, क्षत्रिय वैश्य तथा शूद्रों के कर्म स्वभाव से उत्पन्न गुणों द्वारा विभक्त किये गये हैं। शुद्रों को बिना द्वेष भाव के तीनों वर्गों की सेवा करने का कर्तव्य है0" | मनु के अनुसार दासता इनका कर्त्तव्य था । वासुदेव हिण्डी के अनुसार राज्य को सुचारु रूप से चलाने के लिए, ऋषभनाथ ने चातुर्य वर्ण-व्यवस्था का निर्माण किया। इन चारों में से एक को “कज्जनीवियग:2 नियुक्त किया गया। पेसा चाकर (पेस जन3 या पेसा)54 का अर्थ उपरोक्त वर्णित है। चाकरों को यदा-कदा से डस5 और सेडी6 नाम से संदर्भित किया गया है जो प्रसाधन और अंगार में (अंगपडिकार7 पडिकम्मकारिया)8 सहायता करते थे, विस्तर लगाते थे और मालिश 60 करते थे। दाई के रुप में शूद्रा स्त्रियाँ बच्चों की देख-भाल करती थी61 और उनमें आत्मविश्वास उत्पन्न करती थी । बहुत से ऐसे दास थे जो मालिक की सेवा जीवन पर्यन्त करते थे जैसे कि लसुनिगा के उदाहरण से स्पष्ट है जो एक सार्थवाह की पुत्री रत्तवती के साथ जीवनपर्यन्त रहीं2 । वासुदेव हिण्डी (द्वितीय खं) के अनुसार चाकर और गुलाम समाज के सबसे निम्न स्तर के थे63 । चण्डाल और अन्य तिरस्कृत जातियाँ:-उपरोक्त चार वर्णो के अतिरिक्त समाज में कुछ अन्य जातियाँ थीं जो बस्ती के बाहर रहती थीं। इन्हें चाण्डाल64, पांस65 और मायंग66 नामों से जाना जाता था। इनके निवास स्थान को वासुदेव हिण्डी (प्र. खं.) में पन्नियवाड67 कहा गया है। इन जातियों के लोग राजदरबार68 में प्रवेश नहीं कर सकते थे और न ही किसी सम्मानित व्यक्ति के घर में ही69 । नगर के कुओं70 से पानी नहीं भर सकते थे सम्भवत: इसलिए कि जल ( 32 )
SR No.010266
Book TitleJain Katha Sahitya me Pratibimbit Dharmik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Tiwari
PublisherIlahabad University
Publication Year1993
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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