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________________ सम्बन्ध प्राचीन भारत के इतिहास में राजघरानों से बना रहता था । प्राचीन भारतीय साहित्य में " ठाकुर" शब्द का विविध अर्थो में प्रयोग हुआ है किन्तु प्रायः राजघराने के व्यक्तियों के लिए यह अधिक प्रयुक्त हुआ हैं 4 | प्राचीन भारत में इक्ष्वाकु क्षत्रियों का एक वंश था । उद्योतन सूरि इक्ष्वाकुवंश की उत्पत्ति के सम्बन्ध में विशेष जानकारी दी है। ऐणिका को अपना परिचय देते हुये कुवलयचन्द्र कहता है—“इन्द्र ने ऋषभदेव को आहार के लिये ईख प्रस्तुत किया ।” भगवान ने जब ईख ग्रहण कर लिया तो इन्द्र ने कहा कि आज से भगवान का वंश इक्ष्वाकु के नाम से जाना जायेगा । उस समय से इक्ष्वाकु क्षत्रिय के नाम से प्रसिद्ध हो गये । वैश्यः - वैश्यों को वणिक जाति से अविहित किया गया। वे दूकान रखकर जीविकोपार्जन करते थे37 । व्यवसाय के लिए कभी-कभी वे कारवां बनाकर भ्रमण करते थे और सात्थवाह के नाम से संदर्भित है38 | इम्भ एक सम्मानित जाति थी जिनका संदर्भ जैन आगम-साहित्य में उपलब्ध होता है” और इसी प्रकार का संदर्भ वासुदेव हिण्डी में है कि वे कारवां के रुप में व्यापार करते थे या शहर में सेट्ठी +1 के कर्तव्यों को निभाते थे । ये सब वैश्य वर्ण से सम्बन्धित थे+± । गहपति जो कारवां व्यवसाय करते थे 43 और कृषि कार्यो को भी करते थे 44 | सम्भवत: उनका सम्बन्ध इसी जाति से था । ऐसा प्रतीत होता है कि कभी-कभी यह वर्ण गांव के प्रशासन का भी कार्य भार देखता था 46 | ब्याज पर रुपये बांटते थे और कभी-कभी वित्तीय धोखाधड़ी भी करते थे +7 | जैन कथाओं के अनुशीलन से यह इंगित होता है कि वैश्य वर्ण के लोग बड़ी संख्या में जैन धर्म के अनुयायी थे तथा ये सेट्ठी और सार्थवाह (सात्थवाह) के नाम से भी जाने जाते थे ँ । शूद्रः- भारतीय सामाजिक व्यवस्था प्राचीन काल से ही वर्ण व्यवस्था पर आधारित रही है। कर्मों एवं गुणों के आधार पर विभिन्न वर्णो के कर्म विभाजित थे:— ( 31 )
SR No.010266
Book TitleJain Katha Sahitya me Pratibimbit Dharmik Jivan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPushpa Tiwari
PublisherIlahabad University
Publication Year1993
Total Pages220
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size24 MB
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