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________________ करप्रकर, अर्थ तथा कथा सहित. ५ त्पन्न थयो तेथी यांखनां पडल उघडी गया. त्यां पोताना पुत्रनी समृद्धि जो इने पोताने पण केवल झान उत्पन्न थयुं तरत मुक्तिने पामतां हवां ॥७॥ या श्राविकाप्यमलशीलपवित्रितांगी, सा श्लाघ्यतेत्रि नुवनेऽपि यथा सुनज्ञ ॥ यस्यास्त्रिवारिचुलकादित लोकतुष्टेः स्रोतःसहस्रकृतमुत्सदृशी व गंगा ॥७॥ अर्थः-(या के०) जे (अमलशीलपवित्रितांगी के०) निर्मल एवा शी लें करी पवित्रित ने अंग जेनां एवी (श्राविका के०) श्राविका ने (साथ पि के०) ते पण (त्रिनुवनेपि के०) त्रण नुवननेविषेपण (श्लाघ्यते के०) वखणाय . केनी पेठे ? तो के (.सुनश यथा के०) सुना श्रावि का तेज जेम? वली ( त्रिवारिचुलकाहितलोकतुष्टेः के० ) पाणीनी त्रण अंजलिने बांटवेकरीने करीने सर्वलोकनी तुष्टि जेणे एवी (यस्याः के) जे सुना श्राविका ते (सदृशी के०) समान (गंगा के०) गंगानदी (क के०) क्याथी होय? अर्थात् नज होय. कारण के सुना श्राविका यें तोत्रण अंजलिथी त्रण दार उघाड्यां अने गंगा नदी तो वली (स्त्रो तःसहस्रकृतमुत् के०) पोताना हजारो पाणीना प्रवाहोयें करी लोकोने हर्ष देनारी थाय ने अर्थात् सहस्त्रप्रवाहें करी जगत्तुं कल्याण करे ने अने आ सुनश श्राविका तो पाणीनी त्रण अंजलियेंज जगतने संतोष दाय क थले माटे गंगाथकी सुनश श्राविका अधिक वे ॥ ७ ॥ • अाहिं सुनशनो दृष्टांत होवाथी तेनी कथा कहे . चंपापुरीनेविपे जिनदत्तनामा श्रेष्ठी रहे . तेनी दीकरी परम जैनधर्म पालनारी सुनश नामें हती ते बौना जक्त बुझदास नामा व्यवहारीना पुत्रनी साथे पर पी. एकदा सुनाने घेर कोइ जिनकल्पी साधु याव्या. ते साधुनी आंख मां घांसनुं फोतलं पडेलुं हतुं तेने जिह्वायें करील लीधुं. तेवारे सुनशना कपालमां सिंदूरनुं तिलक हतुं ते मुख अडवाथी साधुना जालमां सिंदूर लागी गयो, हवे ते सुनशनी नणंद महा उष्ट हती तेणे पोताना नाइने कह्यु के नाइ ! आ मारी जानीने में साधुसा| संग करतां नजरें जोइ, ते जो खोटुं मानोतो जुवो आ मारी जानीना कपालमा लगावेलो सिंदूर ते एक बीजाना मुखे मुख मलवाथकी साधुने लाग्यो के ते वात सांजलीने
SR No.010250
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1891
Total Pages401
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size44 MB
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