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________________ Ud कपरप्रकर, अर्थ तथा कथा सदित. वान कीधो मार्गे चालतां वकाल आववाथी राजा, दशपुरनगरें रह्यो तिहां पर्युषण पर्व श्राववाथी उदायिराजायें उपवास कस्यो अने चंमप्र द्योतने रसोइयो पूबवा गयो के आपना सारूं केवी रसोई बनावीयें ? चं मप्रद्योतें कह्यु के जे नदायिराजा सारु बनावो तेज रसोइ महारा वास्ते बनावजो तेने रसोइयें कयुं के नदायिराजाने आज उपवास ले ते सांगली चंप्रद्योतने शंका नपनी जे आज एणे मने फेर आपवानो विचार कस्यो जणाय ने माटेज जुदी रसोइ बनाववायूँ कहे एवा नय थी वोल्यो जे महारे पण आज उपवास के अने ढुं पण जैनधर्मी बूं नदा यीनो साधर्मीनाइ पण मने विस्मरण थइ गयुं तेथी रसोई करवानें क युं तेवात रसोइये जर उदायिनराजा आगल कही तेवारे नदायिने विचा युं जे ए धूर्तताथी बोल्यो बे खरों तो पण महारो साधर्मीनाइ थइ चूको .माटे एनी साथे मिबाउकड आप्याविना शुद्ध सामायिक कर सूजे नही पबी नदायि राजायें चंम्प्रद्योतने कडं के महारी साथे मिजाक्कड कस्य तेणे कर्तुं महारूं राज्य पावू प्राप्य पनी बीजो कोई उपाय नही होवा थी तेने बोडी मूकीने पावू नऊयणीनुं राज्य प्राप्युं अने पूर्व उदायिरा जायें ते चंम्प्रद्योतना ललाटमां दासीपति ए राजा बे एवा अदरनो माम दीधो हतो ते मांमने ढांकी मूकवाने माटे तेने सोनानो पट्ट बंधावी स न्मान करीने उड़ायणी नगरीयें मोकली दीधो ते दिवसथी चंप्रद्योतना कपालमां सुवर्णपबंध निरंतर रह्यो एवीरीतें अविज्ञात पणाथी नपवा सादि सामायिक करे तो पण लान थाय तेवारे विज्ञातपणाथी फलप्राप्ति थाय तेमां तो कहेज झुं ? माटे सामायिक अवश्य करवू ॥१७॥ देशावकाशिकमपास्य सकाकजंघ, कोकाशवहिप दमेति जनः प्रमादी॥ धत्ते प्रनां दिनचरोन निशा करोऽपि,न स्तूयतेऽपिच पयोनृदकालदष्ठः ॥४॥ अर्थः-(जनः के०) मनुष्य, ( देशावकाशिकं के ) देशावकाशिकव्रत ने ग्रहण करीने पनी (प्रमादी के०) बालसु थयो बतो. ते देशावकाशि क व्रतने (अपास्य के० ) तजीने (सकाकजंघकोकाशवत् के० ) काकजंघ सहितकोकाशनीपेठे ( विपदं के०) सुःखने (एति के० ) पामे . एज अ
SR No.010250
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1891
Total Pages401
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size44 MB
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