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________________ ___ कर्पूरप्रकर, अर्थ तथा कथा सहित. ५५ कोणिक राजाने त्रिशूल आप्यु. तेना प्रनावथी बीजा राजायें वासुदेवनी पेठे तेनो त्रिखंझना अधिपतिपणानाराज्य पर पट्टानिषेक कस्यो. एक दिवस श्रीवीरप्रनुनी पासें कोणिक राजायें पूब्युं स्वामी ! चक्रवर्ति केटला थया. जगवान् बोल्या के बा अवसर्पिणीकालने विषे बार चक्रवर्ति थया . त्यारे कोणिकें कडं दुं तेरमो चक्रवर्ती थइश एम कहीने नवीन चक्र रत्नादि चक्र वर्त्तिने योग्य बनाव्यां पनी वैताढयनी गुफाना हार पासें गयो तिहां झारने दंम मारवाथी अधिष्ठायक देवें चार उघाडयुं तेनी उस्मताथी कोणिक राजा तेज समय बलीने नस्मीनूत थइ मरीने नरकें गयो माटे अनर्थदंमथी वि राम पामवं,नही तो कोणिकनी पेठे अवश्य नाश थाय॥इति अनर्थ दंमधारं ॥ सामायिकं विघटिकं चिरकर्मनेदि, चंशावतंसक वंञ्चधियोऽत्र किंतु ॥ स्पर्शेऽपि सत्यमुदकं मलि नंत्वनाशि,घोरं तमोहरति वा कृतएव दीपः॥४॥ अर्थः-(सामायिक के०) सामायिक (घिटिकं के० ) बे घडी पाल्यु होय तो पण (चिरकर्मनेदि के०) घणा कालनां संचेलां कर्मोने नेदना रुं थाय . केनी पेठे ? तो के (चंशवतंसकवत् के०) चंशवतंसक रा जानी पेठे ? अर्थात् वे घडीवार पालेलु सामायिक अनेक कर्मोनो नाश करे , तो जाजीवार पालवाथी (अत्र के०) ए सामायिकमां (उच्च धियः के०) उंची बुद्धिवालाने कर्मनो नाश थाय, तेमां तो गुंज आश्चर्य के ? (सत्यं के०) ते वात सत्य ने त्यां दृष्टांत कहे जे, जेम के ( उदकं के० ) जल (स्पर्शपि के०) स्पर्शने विषे पण (मलिनत्वनाशि के ) म लिन पणाना नाशने करनारूं थाय ने (वा के० ) तथा ( दीप. के०) दी पक, (कृतः के० ) कस्यो बतो (घोरंतमः के० ) जयंकर घणा कालना चं धकारने (हरतिएव के० ) हरण करे बेज तेम जाणवू ॥४७॥ आहिं चंशवतंस राजानी कथा कहे . विशालापुरीने विपे चंशवतंस राजा राज्य करे . ते जैनधर्मपालक परमनैष्ठिक साम्राज्यने करतो हतो. एकदा पांखीने दिवसें ते राजायें पोताना घरने विपे एवो अनिग्रह क यो के ज्यां सुधी आ दीवो रहेशे त्यां सुधी मारे कायोत्सर्ग पार, नहिं. दासीने ते अनिग्रहनी खबर न होवाने लीधे, स्वामी नक्तियें करीने दा
SR No.010250
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1891
Total Pages401
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size44 MB
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