SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 293
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीभुवननानुकेवलीनो रास. २८१ - कांई इहां, में कह्यो जे होय जबाप ॥ सुधा जन ते शोधजो, मुफ गुनहो रे वली करजो माफ ॥ ध० ॥ ए ॥ तपगड मंमण तिलकसो, श्रीराज विजय सूरिराज ॥ तरणि जिस्यो तस पाटवी, रत्नविजय रे सूरी शिर ताज ॥ ६० ॥ १०॥ गुरुराज राजसमाजनो, दीवो सेव्यो सदीव ॥ हीररतन सूरी जनुं, पूरे याश्या रे प्रतापे अतीव ॥ ६० ॥ ११ ॥ जयरत्न सूरी ज करु, संप्रती तेहने पाटें । नावरतन सूरी नेटतां, दुःख मेटे रे नमीयें ते माटें ॥ ० ॥ १२ ॥ श्री हीररत्न सूरिंदनो, सोहे वडेरो सीस ॥ लब्धिरत्न पंमित तेहनो, नमुं वाचक रे जेनी जंगमां जगीश ॥६०॥ १३ ॥ श्री मेघरत्न मुलिंनो, अमररत्न अनुचर तास ॥ शिवरत्न गुरु सुपसाउलें, में गायो रे बनिकष गुण खास ॥ ६० ॥ १४ ॥ सतरंसें नगण्योत्तर समे, वदि तेरस मंगलवार || पोष मास पूर्वापादने, हर्षण योगे रे थयो हर्ष पार ॥ ध० ॥ १५ ॥ गुणनिधि उनाडवा गाममां, जीडनंजन श्रीजिन पास ॥ तास प्र सादें पूरो थयो, रसलहरी रे नामें ए रास ॥ ध० ॥ १६ ॥ जे सांनले सुधे मनें, वली जे जो मनने नाव ॥ ते मुक्ति पामे मानवी, समता रसें रे सदु कर्म खपाव ॥ ६० ॥ १७ ॥ गगने ग्रह मंदर गिरी, धरा सिंधु जिहां लगें धर्म ॥ अविचल रहो ए त्यां लगें, एह संबंध रे दायक शिव शर्म ॥ ध० ॥ १८ ॥ याज सखी महारे खांगणे, सुरतरु फलिने सार ॥ कामगवी प्र गटी नवी, आज अभिनव रे थयो जय जय कार ॥६०॥१८॥ सुख श्रेणी मंगल मालिका, दीपालिका दिन जेम ॥ जुवन जानु केवलीतणा, गुल गातां रे लीला लहिएं तेम ॥ ६०॥ २० ॥ इम उन्नुमी ढालमां, उदयरत्न खाशीष ॥ सुख संपद वाधो सदा, सहु संघनी रे पहोचो सुजगीश ॥ ध० ॥ ११ ॥ इति श्री उदयरत्नजीमहाराजकृत जुवननानु केवलीनो रास संपूर्ण ॥ ग्रंथा ग्रंथ श्लोक संख्या २४१४ ॥ Parmes ३६ ७७ ॥ इति श्रीदयरत्नजीमहाराजकृत वनजानु केवलीनो रास संपूर्ण ॥ C
SR No.010250
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1891
Total Pages401
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size44 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy