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________________ २० जैनकथा रत्नकोष नाग पांचमो. री एक पगे उनो रही तप करवा .मांमधू. तेवामां एक धुर्मुखनामा श्रेणि कना पालायें बावीने ते राजर्षिने कह्यु जे हे मूढ ! तुंगुं तप करे ? वैरी ताहरा नगरने विंटी राज्य ग्रहण करी बमासना तारा बालकने मारी नाख शे. ते वात सांजलतांज ध्याननंग थगयो. पोताना मनमां संग्राम करवा नो विचार थवा लाग्यो तेवामां श्रेणिक राजायें मनें करी वंदन कयुं तो पण तेने धर्मलान न दीधो. तदनंतर श्रेणिकराजायें श्रीवीर पासें यावी ने प्रसन्नचंराजर्षि श्राश्रयी पूज्यु, तेवारें वीरनगवाने सप्तमनरक, मनुष्य जन्म अने सर्वार्थ सिदिगमन, आत्रणे प्रश्नमो प्रत्युत्तर प्रसन्नचंराज र्षिना मनना परिणाम उपर दीधो अने चोथा प्रश्नमां प्रसन्न राजर्षिने केवल ज्ञान उत्पन्न थयुं, एम कझुं ॥॥ तत्तादृशाऽनव्यपितुः सुतोंपि, धर्मालसोयः सुलसोऽनवन्न ॥ स किं विषादेर्विषहन्मणि स्त, पंकान्न वा श्रीसदनं सरोजम् ॥ ए॥ अर्थः-(यः के०) जे (सुलसः के०) सुलसनामा पुरुष (तादृशानव्यपि तुः के०) तेवा अनव्य पितानो (सुतोऽपि के०) पुत्र डे (तत् के०) तो पण (धर्मालसः के०) धर्मनेविषे आलस्ययुक्त (नानवत् के०) न थतो हवो. अ र्थात् धर्मोद्यमी थतो हवो. याहिं कांही आश्चर्य जाणवू नहिं कारण के (सः के०) सर्वजनोमां प्रसिद्ध एवो (विषहत् के०) विषने हरण कर नारो (मणिः के० ) मणि ते (विषाहे के०) विषवाला सर्पथी उत्पन्न थयो एवो तो पण विषने हरण करनारो (किं के०) यु (न के ) नथी थातो? अर्थात् थायज जे. (वा के०) अथवा (श्रीसदनं के०) लक्ष्मीने रहेवा नु घर, (पंकात् के०) कचराथी उत्पन्न थयेलुं अने (तत् के० ) ते सर्वत्र प्रसिह एq (सरोजं के०) कमल (न के०) नथी गुं? अर्थात् डेज. तेम मुष्ट पिताथी उत्पन्न थयेलो एवो सत्पुरुष ते धर्मकृत्य करे ॥ ए॥ यांहि सुलसनो दृष्टांत होवाथी तेनी कथा कहे जे ॥ राजगृहीनगरीने विषे कालकसौकरिकनामा कसाइनो पुत्र सुलस नामें हतो, ते अजयकुमा र नामा मंत्रीनी संगतिथी दयाधर्मपालक श्रावक थयो. पडी कालक सौक रिकने श्रेणिकराजायें वास्यो, तोपण नित्य पांचशे महिष मारवाना पापथी
SR No.010250
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1891
Total Pages401
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size44 MB
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