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________________ २०६। जैनकथा रत्नकोष नाग पांचमो. पहेला जिम हता ॥४॥ सम्यक् दर्शन महामंत्रीने जी॥ घरे जश्ने ते प्रा पीने जी ॥ गले ग्रहीने कीधो यागें जी ॥ मोहने साथें क्रोध अतागेजी ॥ क्रोध अतागें तेहने तव, करावी महापाप, एकेंझ्यिादिक मांहि धरी, जोजो मोहनो व्याप ॥ वलि नर्क तिर्यंच मनुष्यमांहे, फेरव्यो ते फरि फ री॥ वार अनंती विगत तेहनी, ज्ञानी विण कुण लहे खरी ॥ ५ ॥पू रव रीतें खडग देखाडी जी ॥ मोहादिकने पातला पाडी जी ॥ सम्यक् द र्शन मंत्री हारें जी ॥ वार अनंती एणे प्रकारें जी ॥ वार अनंती गयो पण तिहां,पाम्यो नही प्रवेश ॥ रोग विषय रस क्रोधयोगे, अफल कस्या उ पदेश ॥ फरी मोहादिकें सऊ थर, एकेडियादिकमां धस्यो ॥ उदय रत्न क हे वार धनंती, तेत्रीशमी ढालें फस्यो ॥ ६ ॥ ॥दोहा॥ ॥ मलयपुर नामें नगर, मानव देत्र मजार ॥ इंश नामें अवनीपति, राज्य करे ते तार ॥ ॥ विजया राणी तेहने, तेहनी कूरखें तास ॥ थं गज पणे अवतारी, कर्म परिणामें खास ॥ २ ॥ विश्वसेन वारू तिहां, निरुपम दीधुं नाम ॥ अनुक्रमें योवन विउ, सकल कला गुण धाम ॥३॥ अशोक सुंदर उद्यानमां, एक दिन रमवा काम ॥ परिकर पूरें पर वस्यो, राजकुमर ते जाम ॥ ४ ॥ सर्वगाथा ॥ ६०२ ॥ ॥ ढाल चोत्रीशमी॥ ॥ फरमर करमर दो सेला मारु वरशे लो ॥ ए देशी ॥ तव कम हो सुगुरु सदागम योग, तिहां विश्वसेनने वनमा मेलि ॥ तेहने दर्शने हो उलस्युं वीर्य विशिष्ट,तिणें सुविशेष मोहने अवहेलि ॥१॥ त्यां ते खड्ने हो मोहादिक शत्रुनां तन्न,पूर्वेथी अधिक बेदी प्रेमने नरें॥प्रणमीने हो सुगुरु सदागम पास,कर जोडीने बेठो ते सपरिकरें ॥२॥ सदागम हो नपिने सु गुरे तास,श्रुतसंगम कीधो तव सा कहि ॥ विश्वसेनने हो श्रवणे लागी विर तंत, सुणतां जेहथी ज्ञान दशा लही ॥३॥ नमाज्यो हो नवसागरमांहे नूरि, नए नोला तुंने परें परें नोलवी ॥ प्रौढ पापीयें हो मोह राजाने प्र धानें, मिथ्यादर्शनें राख्यो उलवी॥४॥ गेहिनी संगें हो प्रेखी निजनंदि नी सोय, धर्मबुद्धि नाम तेहनुं जूतूं धरे ॥ महापापणी हो त्रिनुवनें नम ती तेह, सदु प्राणीने घेरी वश करे ॥ ५॥ धर्मने बलें हो करावी पापथ
SR No.010250
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1891
Total Pages401
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size44 MB
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