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________________ श्रीनुवननानु केवलीनो रास. । २०५ ली, बहु नेदनी हो लाल ॥ बो० ॥ उदय रतन कहे एम, अरि उडेदनी हो लाल ॥ अ०॥ २०॥ सर्वगाथा ॥५ ॥ ॥दोहा॥ ॥ तिहां राग शेष रूपें अडे, छारें सजड कपाट ॥ ते अघाड्यानो पले, देखाडीj घाट ॥१॥ हमणा में ए जिम कह्यो, तिम तुं करजे तंत ॥ तव तेणें तिम आचयुं, अरिनो लेवा अंत ॥२॥ सम्यक् दर्शन मंत्रिनु, जव इणे दातुं हार ॥ तव कम सजुरुतणो, योग मेव्यो तिणिवार ॥३॥ सहायनी सोंपी ददता, शून्यसा जिणें पलाहि ॥ सुगुरु सदागम संगतें, कम पाण्यो साहि ॥४॥ ॥ ढाल तेत्रीशमी ॥ चनसदहणा ति लिंग ॥ ए देशीमां ॥ ॥ धारल्याननी देशी, रामगिरि रागें चाल ॥ मोह राजा मूर्ना लीनजी, 'झानावरण सामंत दीन जी ॥ नाम गोत्र शोकाधीन जी,रूए राग केसरी थ बलहीन जी ॥ बलहीन सघलुं सैन्य देखी, मिथ्या दर्शन नाम ए॥ मंत्रीश्वर तव थयो ऊनो,धरी हियामां हाम ए॥ अवस्था सदु निज साथ नी, अवलोकी अमरष जयो ॥ अश्रधान नामें महाअष्ट चूर्ण, ग्रही वेगें परवस्यो ॥ १ ॥ पहोतो जश् शीघ्रं ते नंदने पासेंजी, सुगुरु सदागम तव तिहां नासे जी॥ ते नंदन आगें आलस बांमी जी,मोह मिथ्या दर्शनना मांमी जी॥ मांझी कह्या मोह साथना,तिणे अवगुण एकेक ए॥ तव धर्म नृपना पदना पण,गुण कह्या अनेक ए॥ धर्मे सुर शिव दुवे संपद, पा नरकादिक लही ॥ तव ददता प्रनावथी, ते साचुं सघj सहही ॥ ॥ तव मिथ्या दर्शनें निज कामें जी ॥ उष्ट चूरणते अश्रवा नामें जी॥ हेला तसुदी, हिंमत योगें जी॥ तव ते चेती तास प्रयोगें जी॥तिणें प्रयोगें मति पालटी,चिंते ते नंदन ताम एकुण कर्म ने कुण धर्मने कुण,कुगति ने सुर धाम ए॥ किणे कांश दीटुं नहीं ए,बाल जिम तिम कचरे॥ फोगट माटें फंद मांमी, पेट नराम श्म करे ॥३॥ समीप वर्तिने शने शने एम जी, ताली लेइने कहे धरी प्रेम जी॥अहो चरचा ए चितनी उपाई जी॥ धीरजें युं कहे जे दृढ थाई जी ॥ दृढ थइ अहो धर्मनी ए, करे चर्चा फो क ए॥प्रत्यद ते प्रमाणियें, किणे दीठो ने परलोक ए॥ तिहारे कर्म राजा कोपिउ, मोहनी वाधी मानता ॥ तेना सुनट सघला सज थया, परिपूर्ण
SR No.010250
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1891
Total Pages401
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size44 MB
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