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________________ कर्परप्रकर, अर्थ तथा कथा सहित. के) ते हितकारी पुण्यने पामीने (श्रिये के०) मोदलक्ष्मीमाटे ते (धार्य के०) धारण कर, परंतु ते पुण्यने मूकवू नही. ते जेम के (वार्टी के०) समु इने विषे (मणिकत् वारि श्व के०) मोतीनुं करनार पाणी जेम (मुक्ता शुक्तिकया के०) मोतीनी बीपें धारण कराय ले. तिहां दृष्टांत कहे जे के जेम (सकंबलेन के) कंबलनामा वृषनें युक्त एवा (शंबलेननदणा श्व के०) शंबलनामा वृषनें जेम पुण्यने मोद लक्ष्मी माटेधारण कयुं ॥६॥ हवे ते कंबल अने शंबल वृषननी कथा कहे जे ॥ यथा ॥ मदुराए जिणदासो, आनीर विवाहंगो उववासो॥ नंमार मित्तवच्चे, जत्नेनागोहि बागमणं ॥ १ ॥ वीरवरस्त नगवन, नावारूढस्स कासि नवसग्गं ॥ मिल हिहि पई, कंबल संबल समुत्तारे ॥३॥ मथुरानगरीने विषे कोइ जिनदा स नामे शेठ वसे में तेने अत्यंत स्नेहथकी आनीरनीकें पोताना विवा . हानंतर कंबल अने शंबलनामा अत्यंत सुशोनित वे सृषन नेट कीधा. ते बेदु वृषनो प्राशुक आहार तथा जलें करी व्रत पालता एवा शेठनी धर्मासक्ति जोश्ने जातिस्मरण शान पाम्या तेथी पोताना पूर्वजन्मनी स्मृ ति उत्पन्न थइ. तेवारें श्रावकनी पेठे अष्टम्यादिक पुण्य तिथियोना दिवस नेविषे उपवास करवा लाग्या. एक दिवसें ते शेठना कोइक मित्रे नंमीर मित्रनामना यदनी यात्रा करवामां ते बेदु बेलने खेड्या तेथी रुधिरयुक्त थया थका मरण पामी नागकुमार देवो थया. एकदा नावमा बेसीने गं गा उतरता एवा श्रीवीरस्वामीने उपसर्ग करता एवा मिथ्यादृष्टि देवने ते बेदु देवोयें उपसर्ग करतो निवास्यो ॥ ६ ॥ देत्रे नामलवालके च लवणाकीर्णे च रोद्यथा, बीजं किंचिदिदाखिले च फलति दात्रे च नानाफ लैः॥ देवे नैरयिक तिरश्चि मनुजे श्रेयःप्रसूतिस्तथा, तस्मान्मेषकुमारवन्नरनवेऽनंतश्रिये त्वर्यताम् ॥ ७॥ अर्थः-(इह के०) बालोकने विषे ( यथा के०) जेम (बीजं के) बीज, (अमलवालुके के०) निर्मल जेमां रेती उ एवा ( देने के०) देत्र मां फले नही ( च के ) तथा (लवणाकीर्णे के०) लवणाकीर्ण देत्र नेविषे पण (न रोहेत् के०) उगे नहीं कदाच नगे तो फले नहीं (च के०)
SR No.010250
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1891
Total Pages401
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size44 MB
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