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________________ कर्पूरप्रकर, अर्थ तथा कंथा सहित. १५३ माटे थाय , केनी पे तो के ( शकाऽन्यमित्रचमरेंवत् के ) सौधर्म सुरेंनी पासें गयेला एवा चमरेंनी पेठे (आपदे के० ) आपदने माटे (स्यात् के०) होय. जुवो (शुक्रः के०) शुक्रनु,तारो, (इह के०) बाहिं (कदा चित् के०) क्यारेक (प्रकाशलेशं के) लेशमात्र प्रकाशने (तनुतेचेत् के०) विस्तारे ने खरो परंतु (ततः के०) तेथी (किं के०) गुं (महत् के० ) मो होटा एवा (कुमहः के० ) चश्माना तेजने (स्थगयति के० ) ढांकी शके ने? ना ढांकी शकतो नथी. अर्थात् महोटा साथे अनिमान करवु नहिं. हिं चमरेंनी कथा कहे . गजपुरमां पूरण नामें तपस्वी बदु वर्ष पर्यत उस्तर तप करतो हतो, तेना महिमायें करीने मरण पामी पाताल मां चमरचंचा राज्यधानीने विषे नवीन चमरेंइपणे उपन्यो, तेणे एक दि वस अवधिज्ञानेकरी पोताना मस्तकं उपर सौधर्मेनुं सिंहासन जोयु, ते थी तेने प्रबल कोप उपन्यो तेवारे शर्के साथे लडवा चाल्यो, तेने परिकर देवें वायो, तो पण मिथ्यानिमानना वशयकी स्वर्गमा गयो, त्यांज देवो मांहे महाकोलाहल कस्यो,इंई अवधिज्ञान प्रयुंजी चमरेंड्ने प्राव्यो जाणी तेनी उपर पोतानुं वज मूक्युं ते वजने जोक्ने नय पामतो थको ते च मरेंड चमरनु रूप विकूर्वीने श्रीवीरनगवान कासग्गे रह्या हता तेना प गनी नीचें पेसी गयो, वज पण जगवानने प्रदक्षिणा करीने पावं देवेंना हाथमा आवी रह्यु, पड़ी परस्पर शकें तथा चमरें मिथ्या रुत दी, अने क्लेश मट्यो, आमां पातालवासी देवो उपरला स्वर्गमां जाय नहिं अने चमरें३ गयो माटे ए अबेरुं थयुं ॥ इति मानप्रक्रमः ॥ १२ ॥ माया उर्गतये परत्र विपदे चास्मिन् नवे संनवेत्, श्री वीरेण सुरोऽपि कैतवसखा कुब्जीकृतोमुष्ठिना॥ किं कर्ण स्य न निष्फला युधि कला विप्रबलात्ताऽनवत्, किं श्री शोनजगाम वामनतनुर्दैन्यं बलेबधनम् ॥ १२५ ॥ अर्थः-(माया के०) माया ले ते (अस्मिन के ) या ( नवे के ) नवने विषे (उर्गतये के०) उर्गतिने माटे (संनवेत् के०) संनवे, (च के०) तथा ( परत्र के ) परलोकने विषे (विपदे के) विपत्तिने माटे थाय , जुवो (श्रीवीरेण के०) श्रीवीरनगवाने (कैतवसखा के० ) कपटथी थये
SR No.010250
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1891
Total Pages401
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size44 MB
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