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________________ १४६ जैनकथा रत्नकोष नाग पांचमो. जमदग्नि ऋषि तप करता हता, त्यां तेणे एवं सांजव्युं जे “अपुत्रस्य गतिर्नास्ति' श्रा वैदिक वाक्य सांजलीने ते जितशत्रु राजानी दीकरी रे णुकाने परण्या, तेने परशुराम नामा पुत्र थयो, रेणुका एकदिवस पोता नी बेनने मलवा गइ त्यां ते रेणुकाने तेना बनेवी कतवीर्य राजायें जोग वी ते वातनी जमदमि कपिने खबर पडवाथी तेणे पोताना पुत्रने कह्यु के हे पुत्र! था ताहारी उष्टाचरणी माताने तुं मारी नाख्य, ते वात सांजल तांज परशुरामे तरत पोताना कुठारेकरी पोतानी मातानुं शिर कापी ना रख्युं श्रा वात जाणीने जमदनिने कृतवीर्य राजायें मारी नारख्यो, वली प रगुरामें पोताना बापने मारनार कृतवीर्यने मायो तेवारें कृतवीर्य राजानी स्वी सगर्ना हती ते नाशिने तापसना आश्रममा गइ. त्यां तेने पुत्र थयो, तेनुं सुनम एवं नाम पाडयुं, ज्यारे ते यौवन वयने प्राप्त थयो त्यारे सर्व पोतानुं वृत्तांत माताना मुखथी सांजली सुनमचकी कांपिठ्यपुरमा प्राव्यो, तेनी दृष्टिमा क्षत्रियोनी दाढा ते स्थलने विषे रहेली हती ते परम अ नरूप थती हवी त्यां सुनूमने मारवाने माटें परशुराम आव्या,पढी सुनूम ना नाग्ययोगें करी ते स्थलचक्ररूप थ गयुं ते चक्रे करी सुनमें परशुरा मनुं शिरजेदन करी नारख्यं, पूर्व परशुरामें सात वार निःदत्री पृथ्वी करी हती तेवार पनी सुनूम राजा एकवीश वार निर्ब्राह्मणी पृथ्वी करी नर के गयो माटे कपायनो त्याग करवो ए सर्व सुज्ञ संमत ठे ॥ ११ ॥ जीवाः कपायविवशान विचारयंति, चाणाक्यवल्कि मपि कृत्यमकृत्यमत्र ॥ कल्पांतवात विततितुनित स्य पूर्ण,रोदोऽतरस्य जलधेर्ननु कोविवेकः॥२०॥ अर्थः-( कषायविवशाः के० ) कषायथी विवश एवा (जीवाः के० ) जीवो, (चाणाक्यवत् के० ) चाणाक्यनी पेठे (किमपि के०) कांही पण (अत्र के ) आहिं (कृत्यं के० ) कृत्यने अने (यकृत्यं के) असत्य ने (न विचारयंति के०) विचार करता नथी. (कल्पांतवात विततिकुनितस्य के ) कल्पांत कालनो जे पवन तेनो जे विस्तार तेणें करी दुनित एवो अने (पूर्णरोदोंऽतरस्य के०) पूर्ण पृथ्वी आकाशनो अंतर जेनेविषे एवा (जलधेः के०) समुश्ने (किं के० ) झुं (विवेकः के० ) विवेक होय?
SR No.010250
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1891
Total Pages401
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size44 MB
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