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________________ कर्परप्रकर, अर्थ तया कथा सहित. १४५ है. ए निज्ञ करवानुं एकांत स्थल घगुंज सारं ते सांजली ब्रह्मदत्त ते मां रह्यो रात्रिये मातायें ते घरने अग्निये सलगाव्युं तेमांथी ब्रह्मदत्त, मं त्रीनी शिदाथी सुरंगने मार्गे निकली गयो. ते पृथ्वीमां फरतां फरतां य नुक्रमे त्रणखंमनुं राज्य प्राप्त करी पालो पोताने गाम बावतो सांजल्यो के तुरत तेनी माता चुलगी थार्या थइ गइ. अने दीर्घराजाने चक्रवर्ति ब्रह्मदत्तें अनेक कदर्थनाथी मारी नाख्यो ॥ हवे चंदनी कथा कहे . एकदिवस वृहस्पतिनी नार्या तारानामे घ. पीज स्वरूपवती हती तेने जोश चंमा तेना जोग माटे आव्यो, कह्यु ले के ॥ विकलयति कलाकुशलं, हसति शुचिं पंमितं विडंबयति ॥ अधीरयति धीरनरंक्षणेन मकरध्वजोदेवः ॥ १॥ नावार्थ:-कामदेव ने ते, एक द एमां कलाकुशल पुरुषने विकल करे ,क्षणमां पवित्रने हसे बे,दणमां पं मितने विडंबन करे .हणमां धीर पुरुषने अधीर करे .एवो ए कामदेव बे. हवे पोतानीस्त्री तारा तेनी साथें असमंजस कर्म करता चंने जोड्ने वृहस्पतिये शाप आप्यो, के हे पापी ! तुं लांबन सहित था. तथा वली ताहरे कोइदिवस आहिं आवq नहि. एम तिरस्कार कस्यो ॥ ११ ॥ सुनूमजमदग्निजप्रतिमपुंजुमाघर्षजे, कपायदवपावकेवि षयवात्यया दीपिते॥ मदअपवनं ददत्यहह पुण्य कल्प सुम,स्ततोस्तियदिदैवतःशमघनाघनोवर्षति ॥ १२॥ अर्थः-(सुनूमजमदग्निजप्रतिमपुंजुमाघर्षजे के०) सुनूम राजा बने ज मदग्नि पुत्र परशुराम तेना सरखा पुरुषरूप जाडना घसावाथकी उत्पन्न थये लो एवो अने (विषयवात्यया दीपिते के०) विषयरूप विंटोलीया वायुयेंकरी प्रदीप्त एवो (कषायदवपावके के०) कषायरूप दावाग्मिने विषे (महशुगवनं के०) मोहोटा गुणरूप वन (अहहदहति के०) अरेरे बली जाय डे. (ततः के०) त्यार पड़ी पुण्यकल्पमउपर दवामि लागे जे त्यारे ( पुण्यकल्पामः के०) पुण्यरूप कल्पम जे जे, ते ( यदि के० ) जो (दैवतः के०) नाग्य थकी ( शमघनाघनः के०) शमरूप मेघ ( वर्षति के०) वरसे , तो ते क ल्पम (अस्ति के०) त्यां रहे डे, अर्थात् दाह थतो नथी एम जाणवू ॥ आंहिं सुनूमचक्रवर्ति तथा परशुरामनी कथा कहे ले. एक वनने विषे
SR No.010250
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1891
Total Pages401
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size44 MB
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