SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 151
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कर्पूरकर, अर्थ तथा कथा सहित. १३० ने (चंमः के० ) तीक्ष्ण के मन जेनुं एवो प्राणी ( पुत्रेपि के० ) पुत्रने विषेपण (ष्टाशयः के० ) इष्ट ने अंतः करण जेनुं एवो थाय बे, अर्था त् तेने पुत्रनी पण दया यावती नथी. जुवो (जडः के० ) जड एवो इंड् ते ( खपावकादपि के० ) खांमववनने बालवा मुकेला अभि थकी प ए (कंकं के०) कया कया प्राणीने ( मुधा के० ) विनापराध ( न हन्यात् के० ) नहा तो वो अर्थात् घणा प्राणीने इंड़ें हण्या, वली ( वनगतः ho) वनने विषे गयेलो एवो ( जरासुतः के०) जरा पुत्र ते (बान के ० ) बायें करी ( किं के० ) गुं ( बांधवं के० ) पोताना श्रीकृष्म बांधवने (नो विव्याध के० ) न मारतो वो ना मारतोज वो, खने ( अजराजांगजः के० ) अजराजानो पुत्र दशरथराजा ( उच्चैः के० ) अत्यंत पणे ( मुनिघा तपातकनरं के० ) मुनिघातना पातकनारने (किं के ० ) न पामतो हवो ना मुनिघातना पापचारने प्राप्त थयोज माटे हिंसा सर्वथा करवी नहिं ॥ ११४ ॥ लोकमां त्रण दृष्टांत ले तेमां प्रथम खांमव वननी कथा कहे बे. जनमेजय राजायें यज्ञविषे अत्यंत घृत होमवा थकी श्रग्मिने एटली तृ तिथ के जेणेकरी मिने अजीर्ण थयुं, पढी कोइना यज्ञमां घृतदाह था नहिं त्या सर्वेने विचार थयो जे हवे आपले गुं करवुं ? पढी इंड़ें वायुने सहाय करीने अग्निने खांमव वन हतुं तेमां मोकल्यो तेथी ते प्रिये खांमव वन सजीव हतुं ते जस्मीनूत करी नाख्युं, खने अमिने जीर्ण रोग हतो, तेनो नाश कस्यो, या कथा लौकिक शास्त्रगत होवाथी संब-ध जेवी बे. तो पण इहां दृष्टांतमां जीधी ने एम जाणवुं. वली बीजा जराकुमारनी कथा कहे बे. एकदिवस श्री नेमीश्वर जग वाने पूयं के मारुं मृत्यु केवी रीतें थाशे ? त्यारें जगवाने कयुं के जरा कुमारना हाथथी तमारुं मरण थशे ? ए वचन सांजलीने जराकुमारें जा एयुं जे हुं यांहिं रहीश तो महारे हायें कदाच महारा नाइनो नाश याशे एम पोताना नाइ श्रीकृष्मनी नक्तियें करी वनमां जतो रह्यो पढी पाय न नामा असुरें ज्यारे द्वारिका जस्म की नाखी तेवारें बलदेव ने श्री कम जमता जमता ते वनमां गया, त्यां श्रीकृमने तरष लागवाथी पा ली रवा बलदेव कोइ जनाशय प्रत्यें गया पाउन श्रीरुम पीतांबर दी एक काडतले सुइ गया, त्यां फरतो फरतो ते जराकुमार याव्यो, तेणे बे
SR No.010250
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1891
Total Pages401
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size44 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy