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________________ १३० जैनकथा रत्नकोष नाग पांचमो. वी रीते राजायें वनवू एवी प्रतिज्ञा करीने ते गंगासाथे लग्न को,परणीने घेर आव्या पड़ी गंगायें शांतनु राजाने उपदेश करी मृगया रमवानुं व्यसन मू काव्युं एकदा गंगाने गर्न रह्यो त्यारे तेने धनुष्टंकारव करवाना तथा खज धाराना मुखदर्शन करवा वगेरेना दोहद उत्पन्न थया,तदनंतर गांगेय ना मा पुत्रनो जन्म थयो, पढी फरी पण शांतनु राजा मृगया व्यसनमां या सक्त थयो, त्यारें गंगायें तेने घगुंए समजाव्यो तो पण तेणें मान्युं नही अने मृगया रमवा गयो, तेथी परणती वखतें करेली प्रतिझानो नंग थयो जाणीने गंगा पोताना पुत्र गांगेयने लइने पोताना पिताने घेर जती रही त्यां गांगेयना मामायें शस्त्रास्त्र विद्या सारीरीतें गांगेयने शीखवी, तेथी गांगेय सर्व कलामा उत्कृष्ट थयो, पली जगत्मां लोकोये केहेवा मांमधु जे गंगा पोताना स्वामीने त्यागीने पीयरमां रहे बे तेवी निंदाना सुःखथी पोताना पुत्र गांगेयने लश्ने गंगा पाली वनमां ते प्रासादनेविपे जश्ने रही. पाल लथी शांतनु राजायें गंगा पोताने पियर तरफ जवाथी चोवीश वरस प र्यंत पोते शोक कस्यो, केटला एक दिवसें जे वनमां गंगा पोताना गांगे य पुत्रनी साथें रहे जे तेज वननेविषे शांतनु राजा मृगया रमवा माटे आव्या, त्यां गांगेयें मृगया करता अटकाव्याथी गांगेयने अने शांतनु रा जाने परस्पर महायु६ थयुं, ते युधमां गांगेये शांतनुने जीत्या, पडी गंगा ने युनी खबर पडवाथी त्यां ावीने पोताना पति शांतनु राजाने कह्यु के या तमारो पुत्र महाप्रतापी गांगेय . तेनी साथें तमें युक्ष्मां पराज य पाम्या, आ वात सांजली शांतनु राजा अत्यंत प्रसन्न थया, पड़ी गां गेये शांतनु राजाने मृगया रमवाना निषेधनी प्रतिज्ञा करावी जे हवेथी तमारे को वखत मृगया रमवा जवु नहिं ॥ ११३ ॥ पापस तनुमधोधितघृणः पुत्रेपि उष्टाशय, श्यंमः खांमवपावकादपि मुधा कं कं न दन्याङडः ॥ किं बाणेन जरासुतो वनगतो विव्याध नो बांधवं, प्रापो च्चैर्मुनिघातपातकनरं किं नाजराजांगजः॥१२॥ अर्थः-(पापों के०) हिंसाकर्म रूप दिने विषे ( तनुमधोलित गः के०) शरीरधारी प्राणीना वधनेविषे त्याग करी जे दया जेणे एवो
SR No.010250
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1891
Total Pages401
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size44 MB
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