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________________ ११६ जैनकथा रत्नकोष नाग त्रीजो. थवा त्रीजा नवमां अथवा चोथा नवमां ते जीव, मोदें जाय . पांचमो जव सर्वथा थायज नहीं ॥ यउक्तं पंचसंग्रहे ॥ " तश्य चग्ने तमिल, नवंमि सिनति दसणे खीणे ॥ जे देव निरयसंखा, न चरमदेहेसुते हंति" ए दायिकसम्यक्त्व अपौलिक होय जे अने औपश मिकसम्यक्त्व तथा का योपशमिकसम्यक्त्व ए पौलिक होय . केम के, ए बन्ने सम्यक्त मिथ्यात्व पुजल चोखा कस्याथी उत्पन्न थाय , माटें पोजलिक कह्या बे. वली का यिकसम्यक्त्व मुक्तिने विषे सिपना जीवोमां पण पामीयें. ए संदेपथी बी जी गाथानो अर्थ कह्यो ॥ ५ ॥ ॥ हवे एसम्यक्त्वनेविषे अन्यतर सम्यक्त्व कहेवा गुण संयुक्त नव्यप्राणी पामे, ते कहे जेः-अवउनियं मिहत्तो, जिणचेश्य सादुपूयणुजुत्तो ॥ आया रम मेयं, जो पालश तस्स सम्मत्तं ॥ ३ ॥ अर्थः-जेणे मिथ्यात्व बां मथु , एवो नव्य जीव सम्यक्त्वने पामे, ते मिथ्यात्वना पांच प्रकार :एक आनियहिक, बीजो अननियहिक, त्रीजो आनिनिवेशिक, चोथो सां शयिक, अने पांचमो अनाजोगिक. ए पांच प्रकारना मिथ्यात्वनो सर्वथा त्या ग करे. तेवारें जीवने शु६ देव, गुरु गुरु तथा शुभ धर्मनी सहहणारूप सम्यक्त्वनी प्राप्ति थाय. तेमां गुम देव, ते जिन वीतराग जे अढार दोष रहित ले. अने चैत्य ते देव, गृहप्रतिमा स्थापना जिन जाणवा. तथा शुद्ध गुरु ते सुसाधु सु विहित शुद्ध प्ररूपक, दश विध यतिधर्म संयुक्त होय ते साधु जाणवा. ते उनी पूजाने विषे जे उद्युक्त उजमाल तत्पर होय तथा निःशंकितादिक था न प्रकारना आचारने पाले, तेने सम्यक्त्व होय ॥३॥ हवे ते सम्यक्त्व गुञ्जिनेविषे दृष्टांतगत आरामनंदननी कथा कहे :आ जंबुद्दीपने विषे अईचंशकार जरत क्षेत्र बे. तेमां लक्ष्मीपुर नामर्नु न गर बे, ते एवं तो सुशोनित ले के, जाणे लक्ष्मीनु रमण करवाज स्थान होय नहिं ! तेमां विक्रम एवे नामें राजा राज्य करतो हतो. एना चार नाश्यो हता. तेउनां नामः-विमलबुद्धि, बुद्धिसागर, सुबुदि, तथा विशाल बुदि. ए चारे, पोताना नाम जेवाज परिणाम वाला हता. तेमांना वि शालबुधिने पद्मश्री नामनी स्त्री हती. तेमां पण पोताना नामना जेवाज परिणाम हता. कोइ कालें तेना जेहोनी स्वीना उदरथी पुत्र पुत्रीयोनो
SR No.010248
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1890
Total Pages397
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size45 MB
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