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________________ २६ जैनकथा रत्नकोष नाग पहेलो. पाउलथी ललितांगकुमर पण राज्यनी चिंतामा करतार मंत्रीश्वरने सर्व कारनार सोंपी पोतें सैन्य लश् महोटी दिथी पिताने चरणे जश नम्यो. पिता पण नेत्रने आनंदकारक एंवा पुत्रनुं दर्शन पामीने जेम चश्माना दर्शनथकी समुंइने दर्ष थाय, तेम हर्षवंत श्रयो थको पुत्रने कहेवा ला ग्यो के हे वत्स ! हवे अमें परलोक साधन करशुं ! अने तमें ए राज्य अं गीकार करो. ते सांजली ललितांग बोल्यो के हें स्वामी ! दुतमारी सेवामां तत्पर रहीश बने तमें राज्य पालों. 'एम राज्यने अगवांबतां पण राजायें कुमरने राज्य दीधुं. अने पोतें चारित्र तर पस्नवतुं साधन करवा मां मयु. ललितांगकुमर पण पणा वर्ष न्यायपूर्वक राज्य पाली अंत्यावस्थायें चारित्र लश् देवलोकें गयो.. ए ललितांगकुमरखें चरित्र सांगली हे नविज नो! तमें गीतार्थनां वचनने अनुसारें एकमना था श्रीजैनधर्मविषे प्रीति राखो अने दानादिक चार प्रकारनो धर्म पालो, प्रमाद टालो, पाप गालो, आठ मद टालो, शात्मा अजुवालो. तो स्वर्ग मोदनां सुख निश्चय पामो ॥ ३ ॥ इति धर्मविषयिक ललितांगकुमरनी कथा संपूर्ण ॥ हः श्रा नरजवनं उतन "j , ते कहे बे.. इंश्वजावृत्तम् ॥ यः प्राप्य :प्राप्यमिदं नरत्वं, धर्म न मनेन करोति मूढः ॥ क्वेशप्रबंधेन स - लब्धमब्धौ, चिंतामणिं पातयति प्रमादात्॥४॥ अर्थः-(यः के०) जे (मूढः के०) मूढ पुरुष; (इदं के) या (उप्राप्यं के) मुःखें प्राप्त थावा योग्य एवं (नरत्वं के०) मनुष्यपणुं; तेने (प्राप्य केए) पामीने ( यत्नेन के) उद्यमें करीने (धर्म के) धर्मनें ( न करोति के०) न करे हे, (सः के०) ते पुरुष, (क्वेशप्रबंधेन के) अति महेनतें (लब्धं के०) पामेला (चिंतामणिं के०) चिंतामणिने (अब्धौ के०) समुश्मा (प्रमादात् के०) बालस्यें करीने (पातयति के०) नाखे ने. अर्थात् जे मूर्ख पुरुष मोहोटा कष्टें पमाय एवो मनुष्यजन्म पामीने सावधानतायें करीने श्रीवी तरागप्रणीत धर्मने न अंगीकार करे, तेणें अतिउःखें मलेलो एवो प्रत्यद चिंतामणि प्रमादथकी समुश्मा नाख्यो,.. एम जाणवू. ए कारण माटे नरनवें करीने धर्म, उपार्जन करवं. आ ठेकाणे ब्राह्मण रत्नदीपें देवीयें
SR No.010246
Book TitleJain Katha Ratna Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhimsinh Manek Shravak Mumbai
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year1867
Total Pages321
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size37 MB
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