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________________ ४२ वीर ज्ञानोदय ग्रंथमाला उसमें एक गली को पूरा करने का काल ६२२३५ मुहूर्त का भाग देने से १ मुहूर्त की गति का प्रमाण प्राता है । यथा-३१५०८६ -: ६२.९१ =५०७३६११४५६, योजन एवं ४००० से गुणा करके इसका मोल बनाने पर-२०२६४२५६५६ मील प्रमाण एक मुहूर्त (४८ मिनट) में चन्द्रमा गमन करता है । १ मिनट में चन्द्रमा का गमन क्षेत्र इम मुहूर्त प्रमाण गमन क्षेत्र के मील में ४८ मिनट का भाग देने से १ मिनट की गति का प्रमाण आ जाता है। यथा-- २०२६४२५६५६६ : ४८=४२२७६७६६४ मोल होता है । अर्थात् चन्द्रमा १ मिनट में इतने मोल गमन करता है। द्वितीयादि गलियों में स्थित चन्द्र का गमन क्षेत्र प्रथम गली में स्थित चन्द्र को १ मुहूर्त में गति ५०७३६३१५ योजन है । चन्द्र जब दूसरो गलो में पहुंचता है तब इसी प्रमाण में ३४ योजन और मिला देने से द्वितीय गली में स्थित चन्द्र के १ मुहूर्त को गति का प्रमाण होता है । इसी प्रकार आगे-आगे की १३ गलियों तक भो ३४ योजन अधिक २ करने से मुहूर्त प्रमाण गति का प्रमाण आता है। मध्यम गलो में चन्द्र के पहुंचने पर १ मुहूर्त को गति का प्रमाण ५१०० योजन है।
SR No.010244
Book TitleJain Jyotirloka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Jain Saraf, Ravindra Jain
PublisherJain Trilok Shodh Sansthan Delhi
Publication Year1973
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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