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________________ जैन ज्योतिर्लोक एवं बाह्य गलो में चन्द्र के पहुंचने पर १ मुहूर्त की गति का प्रमाण ५१२६ योजन (२०५०४००० मोल) होता है । विशेष५१०१६ योजन के क्षेत्र में हो सूर्य की १८४ गलियां एवं चन्द्र को १५ गलियां हैं। अतएव सूर्य की गलियों का अन्तराल दो-दो योजन का एवं चन्द्र को प्रत्येक गलियों का अन्तराल ३५१२४ योजन का है। सूर्य १ गली को ६० मुहूर्त में पूरी करते हैं। परन्तु चन्द्र १ गली को ६२३३३६ मुहूर्त में पूरा करते हैं। कृष्ण पक्ष-शुक्ल पक्ष का क्रम जब यहां मनुष्य लोक में चन्द्र विव पूर्ण दिखता है। उस दिवस का नाम पूर्णिमा है । राहुग्रह चन्द्र विमान के नीचे गमन करता है और केतुग्रह सूर्य विमान के नीचे गमन करता है । राह और केतु के विमानों के ध्वजा दण्ड के ऊपर चार प्रमाणांगुल (२००० उत्सेधांगुल)प्रमाण ऊपर जाकर चन्द्रमा और सूर्य के विमान हैं। राहु और चन्द्रमा अपनी २ गलियों को लांघकर क्रम से जम्बूद्वीप की आग्नेय और वायव्य दिशा से अगली-अगली गली में प्रवेश करते हैं। अर्थात् पहली से दूसरी, दूसरी से तीसरी आदि गली में प्रवेश करते हैं। पहली से दूसरी गली में प्रवेश करने पर चन्द्र मण्डल के १६ भागों में से १ भाग राहु के गमन विशेष से आच्छादित होता हुआ दिखाई देता है।
SR No.010244
Book TitleJain Jyotirloka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Jain Saraf, Ravindra Jain
PublisherJain Trilok Shodh Sansthan Delhi
Publication Year1973
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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