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________________ जैन ज्योतिर्लोक बिंब प्रमाण १५ गलियों को घटाने से एवं शेष में १ कम (१४) गलियों का भाग देने से एक चन्द्र गलो से दूसरो चन्द्र गलो के अन्तर का प्रमाण प्राप्त होता है । यथा ५१०६६-५६. १५=५१०१६-१३:१-४६७६ योजन इसमें १४ का भाग देने से-४६७:१५ १४-३५३३६ योजन (१४२००४१६४ मोल) प्रमाण एक चन्द्रगलो से दूसरी चन्द्र गली का अन्तराल है। __ इसी अन्तर में चन्द्र विब के प्रमाण को जोड़ देने से चन्द्र के प्रतिदिन के गमन क्षेत्र का प्रमाण पाता है। यथा-३५२१६ - १६=३६१३६ योजन अर्थात् १४५६५३:३६ मोल प्रतिदिन गमन करता है। इस प्रकार प्रतिदिन दोनों ही चन्द्रमा १-१ गलियों में आमने-सामने रहने हुये १-१ गली का परिभ्रमण पूरा करते हैं। चन्द्र को १ गली के पूरा करने का काल अपनी गलियों में से किसी भी एक गलों में संचार करते हुये चन्द्र को उस परिधि को पूरा करन में ६२२, मुहृतं प्रमाण काल लगता है । अर्थात् एक चन्द्र कुछ कम २५ घन्टे में १ गली का भ्रमण करता है। सूर्य को ? गली के भ्रमण में २४ घन्टे एवं चन्द्र को १ गली के भ्रमण में कुछ कम २५ घन्टे लगते हैं। चन्द्र का १ मुहूर्त में गमन क्षेत्र चन्द्रमा की प्रथम वीथी (गली) ३१५०८६ योजन की है
SR No.010244
Book TitleJain Jyotirloka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMotichand Jain Saraf, Ravindra Jain
PublisherJain Trilok Shodh Sansthan Delhi
Publication Year1973
Total Pages152
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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