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________________ अतएव कन्याओं की कमी को रोकने के लिये वाल विवाह परदा आदि कुरीतियों को रोक कर प्राचीन रीतियों काप्रचार स्त्री समाज में करना चाहिये। इस समय जैन समाज में पुरुषों से स्त्रियां ४०००० कम हैं और शेप स्त्रियों में डेढ़ लाख विधधाएँ हैं। २-पुरुषों का बार बार विवाह करना भी अधिक पुरुषों के अविवाहित रहने का कारण है। एक तो पहिले ही स्त्रियां कम है । उस पर एक २ पुरुष कई २ विवाह करके इन स्त्रियो के 'अकाल' को और भी अधिक बढ़ा देता है। जिससे अधिकांश पुरुप कुंवारे रहते हैं और व्यभिचार की वृद्धि करते हैं। सरकारी रिपोर्ट में यह अच्छी तरह से दिखा दिया गया है कि यहां स्त्रियां ही अधिक भरती हैं। अतएव विधवाओं की अपेक्षारंदुओं की कमी का कारण यही है कि रंडुवे दुवारा शादी करलेते है और विवाहितों में गिन लिए जाते हैं। वृद्ध विवाह, कन्याविक्रय के साथ ही धन का दोसत्व भी अधिक पुरुषों के अविवाहित रहने का कारण है। इसके कारण अयोग्य धनिकों के अनेक विवाह हो जाते हैं, पर बहुत से निर्धनी सुयोग्य पुरुषों का एक भी नहीं होने पाता। धन के लोभ से लोग स्त्रियों के असली सुख 'सुयोग्य पति' के महत्व को भूल गए हैं। अतएव इस प्रकार के प्रयत्ल करना चाहिये जिनसे पुरुप चार २ विवाह न करें और निर्धनी सुयोग्य व्यक्तियों के भी विवाह हो सके। ३-उपरोक्त दो कारणों के दूर होते होते जो कमी स्त्रियों की है उसके कारण जो पुरुष विवाह योग्य होने पर भी अविवाहित रह जाते है और सख्या का हास सन्तानोत्पत्ति न करके करते हैं, उसका भी प्रवन्ध होना चाहिये। इसके
SR No.010243
Book TitleJain Jati ka Hras aur Unnati ke Upay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherSanyukta Prantiya Digambar Jain Sabha
Publication Year
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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