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________________ (४२) में बाल विवाह प्रादि कुरीतियों का प्रचार कम है और त्रियाँ का श्रादर यथेठ है। प्राचीन कान की नांनिये पद से बरो हैं और शिना ले भूपिन हैं। उनमें प्राचीन सभ्यता की मतक है। इसी कारण उनकी संख्या अन्य प्रान्तों की अपेक्षा पढ़ी हुई है। इसी हिताय से इन प्रान्तों के निवाली जैनियों को संख्या समझना चाहिए । वस्तुत:- मद्रास प्रान्त की जैन सगज में अधिकतर-प्राचीन रीति रिवाज भी मिल रहे हैं परन्तु उनमें निर्धनता उत्तर प्रान्त को अपेक्षा अधिक है।दूउरी वात विचारणीय यह है कि भारत में १००० पुम्मों में पाँच वर्ष की उमर को त्रियां २०३-है। इससे भी प्रमाणित होता है कि पांच वर्ष के उपरान्त ही ऐसे काम लिया वन में उपस्थित होते हैं जो उनकी घटी करदेते हैं। यह कारण क्या है ? मनुष्याना को रिपोर्ट में तिष्ठा है कि पुराण कोअपेक्षा रियों को अधिक मन्यु के कारण उनसे बुरा पर करना, अधिक काम लेना, उनका अनादर, न स्वास्थ्यनाशक पद का होना, उनका वालपन में विवाद होना और बचपन में ही गर्भवती होजाना आदि हैं। उन्हीं का दिग्दर्शन हम ऊपर कर चुके हैं। और निम्न कोष्टक-से भी इसी यात को पुष्टि होती है जिससे प्रश्न है कि उक्त कारमा वश वील. वर्ष कोलियो अधिक मृत्यु होता है जिसके कारसत्तस्त्र के पश्चात् कोराघवायाको अपेक्षाविधवाग्रामीसंख्या अधिक है। १० से-१४ वर्ष तककी १००० लीजादिमट विधवाएँ हैं। १५ से १६ , , . ६६ . . ४०-से-५8-. ६०-से ऊपर, , , y , ५७१--, ., - - -७२६. "',
SR No.010243
Book TitleJain Jati ka Hras aur Unnati ke Upay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherSanyukta Prantiya Digambar Jain Sabha
Publication Year
Total Pages64
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size3 MB
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