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________________ जैन जगतो . प्रतीत खण्ड 8 ज्योतिष-शिल्पश्रीजन२० ज्योतिष, भुवन२०७दीपक-से न ज्योतिष ग्रंथ हैं; ज्योतिष २० करण्डक विश्व-ज्योतिष में अनूपम ग्रंथ है। विज्ञान ज्योतिष का भला कैसे न आविष्कार हो ? जब लग्न मुहुर्त के बिना होता न कुछ व्यापार हो ॥ १६४॥ मंत्र ग्रन्थवह मंत्र-बल तो बस हमारा देखने ही योग्य था; मंत्र-बल से सुर-भुवन में गमन हमारा योग्य था। अतऐव विद्यारत्नर ०९,अद्भुत२१ सिद्धि पुस्तक लेख्य है; आकाश२१ 'गामी पुस्तिका सबभाँति से अवख्य है ॥ १६५।। हाँ, ग्रन्थ चाहे आपको ऐसे कही मिल जायँगे; पर भाव, भाषा में अधिक कल वे न इनसे पायँगे। नख-शिख-विवेचन जिस तरह हर तत्त्व का इनमें हुआ; वैसा न वणन आज तक अन्यत्र ग्रन्थों में हुआ ॥१६६ ।। ऐसा न कोई है विषय, जिस पर न हमने हो लिखा; जिस पर कलम थी चल गई, उसको न फिर बाकी रखा। इतिहास, ज्योतिष, नय, निगम, छंदागमालंकार से । साहित्य संकुल है हमारा, पूर्ण है रसचार से ।। १६७ ।। जितने हमारे ग्रन्थ है, सब को गिनाने यदि लगें; संक्षेप में प्रत्येक का यदि कुछ विषय कहने लगें;ऐसे खड़े कितने बड़े पुस्तक नये हो जायँगे; नामावली, विषयावली के ग्रंथ शत बन जायँगे ॥१८॥
SR No.010242
Book TitleJain Jagti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherShanti Gruh Dhamaniya
Publication Year1999
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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