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________________ जैन जगती * परिशिष्ट ५७ - खपुटाचार्य - ये प्रखर तेजवन्त आचार्य थे। आपने अनेक बौद्ध विद्वानो को शास्त्रार्थ में निस्तेज किया था। आपने प्रवर बौद्ध विद्वान् बहुकर को शास्त्रार्थ में हराया था । भृगुकच्छ नगर में अब भी एक गौतम बुद्ध की अर्धनमित मूर्ति है । कहते हैं कि इस बुद्ध मूर्ति ने खपुटाचार्य के आदेश पर उन्हें वंदन किया था । 866 ५८ - स्वयंप्रभसूरि-ये श्रुतज्ञान के धारी महा तेजस्वी आचार्य थे | आपने लाखों हिंसकों को अहिंसक बनाया था । मरुप्रान्त के अन्तरगत आया हुआ श्रीमालपुर एक समय परमहिंसक था । आप श्री ने ही उस समस्त नगर को तथा वहाँ के राजा जयसेन को जैन बनाया था । श्रीमाल ( एक जैन जाति ) श्रीमाल - पुर से ही जैन बने थे । प्राग्वट वंश को भी आपने ही जैन बनाया था, जो अब जैन पोरवाल जाति के नाम से विद्यमान है । ५६ -- रत्नप्रभसूरि- आपने मरुधर प्रान्त अन्तर्गत आई हुई ओसिया नगरी के निवासियोंको जिसका पूर्व नाम उपकेशपुर था जैन बनाया था। तभी से ओसिया नगरी के निवासी ओसवाल कहलाते हैं । ६० - समिताचार्य - ये वज्रस्वामी के मामा थे, परम तपस्वी आचार्य थे। इन्हें आते हुए देखकर जलपूर्ण नदी, सर भी इनके लिये मार्ग कर देते थे । ६१ - वज्रसेनाचार्य - ये परम तेजस्वी आचार्य थे। इनके समय में बारह वर्ष का भयंकर दुष्काल पड़ा था | आपने सोपारक नगर के निवासी श्रेष्ठी जिनदत्त की स्त्री ईश्वरी को २०७
SR No.010242
Book TitleJain Jagti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherShanti Gruh Dhamaniya
Publication Year1999
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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