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________________ जैन जगती, 9 भविष्यत् खण्ड छ ScretAEEN घर में तुम्हारा राज्य हो, पति से तुम्हारा प्रेम हो, बाहर सदा सहयोग हो, संतान तुमको हेम हो; इस भाँति से पतिदेव को सहयोग यदि देने लगो;सुख के दिवस आ जायँगे, सुख लूटने लेने लगो॥१४।। नारी-कला से आज भी यदि प्रेम जो रहता तुम्हें, ऐसा निखिल दारिद्रय तो नहिं देखने मिलता हमें ! तुम जिन दिनों में हाथ से चर्खा चलाती नित्य थीं; सुख से भरे वे दिवस थे, करती सभी तुम कृत्य थीं ॥१४६।। जब से बनी तुम कामिनी, मूर्खा, परायी भामिनी; दुर्भाग्य की तब से हमारे पड़ गई कच यामिनी! ये आपके बिन नर नराधम भी न जी सकते कभी ! सम हो जहाँ दोनों, वहाँ कोई कमी कहते कभी ? ॥१४॥ हे मातृ ! भगिनी ! आप अपनी इस दशा का हेतु हैं; अपने पतन.के कारणों में आप कारण केतु हैं। आदर्श, साध्वी प्राप थीं जब, देश भी आदर्श था; संतान थीं सब सद्गुणाकर, शिव सुखं, उत्कर्ष था !! ॥१४८।। इतिहास बहनो ! आज तक का यह हमें बतला रहासंसार पीछे आपके मरता हुआ है आ रहा । वह राम-रावण युद्ध भी था आपके कारण हुथा; विध्वंश कौरव-पाण्डवों का आपके कारण हुआ ॥१४॥
SR No.010242
Book TitleJain Jagti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherShanti Gruh Dhamaniya
Publication Year1999
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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