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________________ *जैन जगती Gide * भविष्यत् खण्ड ; जिस जाति की पंचायतन में ईश का यदि अंश है वह जाति जग की जातियों में एक ही अवतंश है । जिस जाति की पंचायतन में न्याय है अरु स्वत्व है ; वह जाति गोरवयुक्त है, उसका अचल अमरत्व है || १२०|| dard पंचायतन में फिर वही ईशत्व यदि भरजाय तो, - पंचायतन में ज्ञान की रे ! ज्योति यदि जग जाय तोक्या देर फिर हमको लगे जगते हुए, उठते हुए ? कैसे भला स्थिर रह सके तम भोर के फटते हुये ? ॥ १२१ ॥ पंचायतन में ईश का आवास पंचो ! अब करो तुम न्याय, संयम, शीलसंगत वृत्त का सेवन करो । अन्याय, अत्याचार जो पंचायतन में भर गयाहै, जाति का नैतिक पतन वह मूलतः ही कर गया ! ॥ १२२ ॥ ; खर्च पंचो ! रोक दो, विक्रय सुता का रोक दो, अनुचित प्रथायें रोक दो शिशु-पाणि-पीड़न रोक दो, तुम पाप खग के पक्ष दोनों वजू बन कर तोड़ दो अब जाति के अवयव विकल, बन कर सुधारस जोड़ दो ॥ १२३ ॥ ; कवि हमको जगादो आज कविवर ! तान मीठी छेड़ कर ; आलोक करदो भानु का तमसावरण को छेद कर । मुर्दे जनों के श्रुत-पटों में काव्य- अमृत डाल दो; सकते उठा नहिं मर्त्यको तो काव्य कर से डाल दो || १२४ || १७१ :
SR No.010242
Book TitleJain Jagti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherShanti Gruh Dhamaniya
Publication Year1999
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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