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________________ जैन जगती Peacoccort ॐ वर्तमान सडक अब वीर भामाशाह-सा हा! देश-सेवी है नहीं; बदला हमारा रक्त है या रक्त हम में है नहीं ! हमको हमारे स्वार्थ का चिन्तन प्रथम रहता सदा; हम देखते हा ! क्यों नहीं आई हुई घर आपदा !!! ।। २४५ ।। "हिन्दू हमें कहना न, हम हिन्दू भला कब थे हुये ! होकर निवासी हिन्द के हैं हिंद से बदले हुये ! जिनधर्म तुम हो मानते, इस हेतु भाई ! जैन हो; हिन्दू तुम्हारी जाति है, तुम हिन्दुओं में जैन हो ।। २४६ ।। राष्ट्रीय भावों से भरा जिस जाति का मन है नहीं; उस जाति का तो स्वप्न में उद्धार सम्भव है नहीं। जो देशवासी बन्धुओं के रुदन पर रोया नहीं, उसके हृदय ने सच कहूँ मानवपना पाया नहीं ॥२४७ ।। कौलिण्यता कौलिण्य कुलपति आपका पर्दानशी में रह गया ! गिरि पाप भी इसके सहारे अोट ही में रह गया! अब मार कर हा ! शेखियें तुम रख रहे कुछ मान हो ! चूहे उदर में कूदते, पर मूंछ पर तो धान हो ! ।। २४८ ।। कहदें तुम्हें 'वणिया' 'महाजन', रण वहीं मच जायगा; उर 'शाहजी साहेब' पर दो बांस पर उठ जायगा। महता, मुसही नाम अब सब गोत्रवत हैं हो गवे ! पूर्वज मुसही हो गये, पर तुम फिसही हो गये ! ।। २४६ IF
SR No.010242
Book TitleJain Jagti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherShanti Gruh Dhamaniya
Publication Year1999
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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