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________________ जैन जगती वर्तमान खण्ड ® जिसमें न है कुछ आत्म-बल, वह आत्म जाप्रत है नहीं; बिन आत्म-बल के बन्धुओ! कुछ काम होता है नहीं। बस जाग कर के बन्धुओ! तुम प्रथम घर-शोधन करो; तुम खोद कर जड़ दोप की, दुख जाति के मोचन करो॥२४०॥ हे बन्धुओ ! बस आज से ही कमर कसना चाहिए; अब हो चुका है बहुत ही, आगे न सहना चाहिये। मिलकर सभी भाई परस्पर आज अग्रिम आइये हैं आप भी कुछ चीज जग में-सिद्ध कर दिखलाइये ।। २४१ ।। राष्ट्रीयता जिसको न अपने देश से कुछ प्रेम है, अनुराग है; वह व्यक्ति हो या जाति हो, उसका बड़ा दुर्भाग है । जिसने न जीवन में कभी निज देश-हित सोचा कहीं; उस जाति की, उस व्यक्ति की संसार में गणना नहीं ।।२४२।। हममें न श्रद्धा, भक्ति हैं, नहिं देश-हित अनुराग है ! अतिरिक्त हमको स्वार्थ के दूजा न प्रियतर राग है ! स्वातंत्र्य हित ये देश भाई यातनाएँ सह रहे ! कितने हमारे में कहो निज देश हित तन दह रहे ? ॥२४३ ।। धन की हमारे पास में अब भी कमी कोई नहीं; पर राष्ट्र के कल्याण में व्यय हो रहा कौड़ी नहीं ! 'अविचारणीया क्षति हुई स्वातंत्र्य की इस क्रान्ति से'हमने भला यह तो कहा नारी सुलभ मति-भ्रान्ति से!!!२४४॥
SR No.010242
Book TitleJain Jagti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherShanti Gruh Dhamaniya
Publication Year1999
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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