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________________ जैन जगती, RecenteEcon 8 वर्तमान खण्ड हिन्दी हमारो राष्ट्रभाषा आज होने जा रही; इसमें न है साहित्य जिसका, जाति वह खल खा रहो । यह काल प्राकृत, देवमापा के लिये अनुदार है। हिन्दी न आती हो जिसे, जीवन उसी का भार है ।। १६५।। । पत्रकार लेखन-कला कुछ आगई, कुछ युक्ति देनी आगई; प्रारम्भ करने पत्र की अभिलाप मन में आ गई। संवाद झूठे दे रहे-ये विप-वमन हैं कर रहे; ये पतन की पाताल में जड़ और दृढ़तर कर रहे !! ।। १६६ ये व्यक्तिगत आक्षेप करने से नहीं है चूकते; टुकड़ा न कुछ मिल जाय तो ये श्वानवत हैं भूकते। छोटे उड़ाना ही रहा अब प्राय इनका काम रे! झूठी प्रशंमा कर सकें पा जायँ यदि कुछ दाम रे ! ॥१६७ ॥ इनको न जात्युद्धार पर कुछ लेख है लिखना कहीं ! इनका न विज्ञापन-कला बिन काम रे ! चलता कहीं। अपवाद, खण्डन छाप देंगे भग्न करके शान्ति को इनको नमन शत बार है, है नमन इनकी क्रान्ति को !! ॥ १६॥ उपदेशक व नेता आख्यायिका कुछ आगई, कुछ याद जीवन हो गये, कुछ आपके कुछ दूसरों के ज्ञात अनुभव हो गये, कुछ सुक्तियों का युक्तिपूर्वक बोलना भी पा गया; व्याख्यान-दाता हो गये, मुँह फाड़ना जब आ गया।॥ १६ ॥ ११५
SR No.010242
Book TitleJain Jagti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDaulatsinh Lodha
PublisherShanti Gruh Dhamaniya
Publication Year1999
Total Pages276
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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