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________________ भरने के जैसा प्रकार है, चिन्तामणिरत्नको कव्ये उडाने के वास्ते फेंक देना उसीकी वरावर है, कल्पक्षको कुल्हारेस काटकर वहां आकका पेड रोप दे वैसा है, हाथी वेचकर गद्धा खरीदने के जैसा काम हैं. समुद्रपार जाने के समर्थ जहाजको छोडकर पत्थरकी पकडने जैसी मूर्खता है, सूत के धागे के लिये नौसर मुहार तोड डालने जैसा वाहियातपना है, खींटी के खातिर महेल गिरादेने जैसा बेवकूफीका काम है, और एक पाटियेकी खातिर भर समुद्री जहाज भांग डालने के जैसा अहंकपनका कार्य है. जो कुबुद्धिजन स्वच्छंदतासे चलकर सर्वज्ञ कथित सत्य मार्गको लुप्तकर उन्मार्ग ग्रहण करते हैं, वैसे निफट नादान लोग सज्जन समाज के भीतर हंसी के पात्र या निंदा के पात्र होते है. इतना ही नहीं, मगर विषय कपाय के तावे होकर किये हुवे दुष्कृत्यों के योगसे भवातरमै नरक निगोदादि महादुःख के भागी होते हैं। ऐसा समझकर सज्जन परभवसे डरकर स्वच्छंदता छोड सर्वज्ञ कथित सत्य मार्गको ही स्वीकृत करके निर्भयतासें उसीका ही सेवन करते है, तो अंतमै वै महानुभाव दुःख के दरियावसे पार होकर अक्षय मुख संपत्ति स्वाधीन कर सकते हैं. ऐसे अनेकानेक दृष्टांत अपन आगमद्वारा मुनकर अपना सकर्णपना सार्थक करने के वास्ते वैसे महाशयों के चरित्र अमृतका पानकर स्वकर्तव्य समझकर स्वपरका श्रेय साधनहितार्थ सब तरहकी कायरता छोडकर त्रिकरण शुद्धिमें सदुद्यम करना ही लाजिम है.
SR No.010240
Book TitleJain Hitbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1908
Total Pages331
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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