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________________ २० गुरुजी बुलावै तब' जाने कारखाये जैसे कठोरवचन न बोलना. २१ गुरुजी बलाये तब अपने आसन पर बैठे बैठे ही उत्तर न देना यानि तुरंत खडे होकर बहु मानपूर्वक गुरुजीके नजदीक आकर नम्रतासें योग्य जवाब देना चाहिये, मगर उन्मत्तकी तरह मोजमें आवै जैसा जवाब न देना. . ___२२ गुरुजी पूछे तब क्या है' जैसी असभ्यतासें उत्तर न देना. ___२३ 'यो काम तुमही कर लो' इत्यादि विनयरहित गुरुजीक रहामने न बोलने चाहिये. २४ गुरुजी कुछ हितबचनसें धर्मकार्य में प्रेरणा करै, तब उलटा 'हमकोंही देखे है. ' असा बोलकर गुरुजीकी तर्जना न करनी चाहियें. २५ गुरुजीकी प्रशंसासें नासुस होकर उलटा नाराज हो गुरुगुणकी प्रशंसा न करे-वैसा न करना चाहिये. २६. गुरुजी कथा कहते होवै, तब 'तुमकों ये अर्थ याद नहीं है ? असा अर्थ नहीं है'-असा न बोलना चाहिये. २७ गुरुजी कथा कहते हो तब वीचमें श्रावकोंकी अपनी मुशता दिखाने के वास्ते 'मैं तुमको पीछे खुलासा बतलाउंगा.' असा कहकर धर्मकथाका छेद न करना चाहिये. २८ चलती हुई कथामें 'पोरमीका पत्त या आहारका पख्त हुवा है' जैसा बतलाकर पर्षदाका भंग न करना चाहिये. .
SR No.010240
Book TitleJain Hitbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKarpurvijay
PublisherJain Shreyaskar Mandal Mahesana
Publication Year1908
Total Pages331
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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