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________________ A ( ३६ ) जब विभिन्न संस्कृतियां एक क्षेत्र व एक काल में अनुकूल व प्रतिकूल घनिष्टतम सम्पर्क में आती हैं तो उनमें परस्पर न्यूनाधिक प्रभाव पड़ता ही है एवं उनमें परस्पर बहुत कुछ आदान प्रदान भी होता ही है । जैन धर्म और संस्कृति ने भी प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप में अन्य भारतीय संस्कृतियों को प्रभावित किया है तथा वह भी उनके प्रभावों से अछूती नहीं रही। जैनियों के अल्प संख्यक होने के कारण उन पर यह प्रभाव विशेष देखने में आता है । भट्टारक युग में व्यापक समाज के साथ अपना तालमेल बैठाने के लिए उन्होंने शैव और वैष्णव क्रियाओं का अनुकरण किया। राजस्थान के इतिहास में इस प्रकार के कई उदाहरण मिल जायेंगे कि एक ही कुल में जैन और शैव साधना चलती थी । विशेषकर वैदिक सम्प्रदायों का अद्भुत प्रभाव श्रमण संस्कृति पर पड़ा। इससे जैन समाज का ढांचा विल्कुज वदल गया । वस्तुतः परस्पर प्रभाव ग्रहण की यह प्रक्रिया किसी मूल संस्कृति के अलगाव का संकेत नहीं बल्कि उसके विभिन्न दिशागत विकास की सूचक है। इसी के समानान्तर महावीर स्वामी से पूर्व जैन धर्म 'निग्नथ मत' नाम से प्रचलित था और वैदिक धर्म का विरोधी नहीं था। वैदिक धर्म के समान ही जैन धर्म आत्मा की सर्वव्यापकता मानता है। दोनों का पूर्नजन्म में विश्वास है। शुभाशुभ कर्मों के फलों में दोनों की समान धारणा है। नैदिक धर्म की भांति यम-नियम एवं तपस्या के महत्व को जैन धर्म ने भी प्रधानता दी है। जैन त्रिरत्न व पंचमहाव्रत का नैदिक धर्म में भी समान महत्व है।। जैन धर्म भागवत धर्म की भांति मूर्ति-पूजा, उपवास आदि १-५० टोडरमल : व्यक्तित्व और कर्त्तव्य-डा० हुकमचन्द भारित्य-पृ० १३ - - -
SR No.010239
Book TitleJain Hindu Ek Samajik Drushtikona
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Mehta
PublisherKamal Pocket Books Delhi
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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