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________________ ( ४० ) विधानों को मानते हैं। दोनों ही सदाचार पर बल देते है।' भारतवर्ष के इतिहास का अवलोकन करने पर संस्कृति की विभिन्न धारायें हमें दिखाई पड़ती हैं। स्मरणीय है कि ये धारायें, धारायें हैं.दीवारें नहीं। दो पड़ोसी जैसे आपस में एक दूसरे से प्रभावित होते हैं उसी प्रकार पड़ोसी धर्म या संस्कृतियों भी एक दूसरे से प्रभावित हुए बिना नहीं रहती। अलबत्ता एक की दूसरे के द्वारा रक्षा और पोषण का कार्य होना चाहिए । भारतवर्ष के मुख्य धर्म तीन थे । वैदिक, जैन और बौद्ध । इन तीनों के जो भी संदेश हैं वे आपको मिलते-जुलते से मिलेंगे। कभी-कभी तो ऐसा प्रतीत होता होगा कि जीवन की समस्याओं को हल करने में वे एक दूसरे के पोषक हैं।२।। भारतीय संस्कृति का स्वरूप दर्शन करने के लिए यह नितान्त आवश्यक है कि भारतवर्ष में प्रचलित और प्रतिष्ठित विभिन्न संस्कृतियों का समन्वयात्मक दृष्टि से अध्ययन हो । भारतवर्ष की प्रत्येक संस्कृति की अपनी एक विशिष्ट धारा है। वह उसी संस्कृति के विशिष्ट रूप का प्रकाशक है। यह बात सत्य है, परन्तु यह बात तमीसत्य है कि उन संस्कृतियों का एक समन्यात्मक रूप भी है। जिसको उन सब विशिष्ठ संस्कृतियों का समान्वित रूप माना जा सकता है, वही यथाथ भारतीय संस्कृति है। प्रत्येक क्षेत्र में जो समन्यात्मक रूप है, उसका अनुशीलन ही भारतीय संस्कृति का अनुशीलन है। गंगा-जमुना तथा सरस्वती इन तीनों नदियों की पृथक सत्ता और महात्म रहने पर भी इनके परस्पर संयोग से जो त्रिवेणी संगम की अभिव्यक्ति होती है उसका महत्व और भी अधिक है। १-प्राचीन भारतीय इतिहास -हेतसिंह बघेला -पृ० १५६ २-जीवन दर्शन लेखक अमर मुनि-पृ० २२० ३-सूक्ति त्रिवेणी : अमरमुनि-प्राक्कथन : पं० गोपीनाथ कविराज
SR No.010239
Book TitleJain Hindu Ek Samajik Drushtikona
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Mehta
PublisherKamal Pocket Books Delhi
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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