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________________ ( १६ ) चाह नहीं खादी अपनाकर, देश भक्ति जतलाऊं मैं। चाह यही स्वीकार करो, . गांधी मुझको चरणों का दास । अपना जीवन सफल बनाने, पड़ा रहूँ मैं तेरे पास ।' (लेखक की १९४१ की रचना) अचानक इसी दौरान पिता की मृत्यु इन्हें व्यापक दायित्वों से और जोड़ गई तथा २८ वर्ष की आयु में पारिवारिक समस्त जिम्मेदारियों के प्रति उन्हें सचेष्ट होना पड़ा। एक नये जीवन-क्रम का प्रारम्भ गांव से शहर की पोर... इनकी विकासशीलता इन्हें प्रयोग के अपेक्षाकृत विस्तृत दायरे में ले आयी और छोटा-सा शहर वीना, पाने वाले कई वो तक इनके जीवन का महत्वपूर्ण कर्मक्षेत्र बन गया । इनकी कार्यकुशलता तथा विविध क्षेत्रों में इनकी सक्रिय रुचि के कारण धीरे-धीरे लोग इन्हें महत्व देने लगे और सन् १९५४ में इन्हें नगरपालिका बीना का उपाध्यक्ष चुना । इससे पूर्व इन्होंने नगरपालिका के अवैतनिक कोपाध्यक्ष का दायित्व निर्वाह सफलतापूर्वक किया। इसके समानान्तर ही लोगों का विश्वास इनके प्रति बढ़ता गया । सहयोगी और निर्देशक दोनों के बीच निर्माण कार्य की गति इनमें क्रमशः तीन हुई और कई संस्थानों के संचालन दायित्व का भार थोड़े ही अन्तराल से इन्हें स्वीकरना पड़ा। १६५४ से १९५८ के ५ वर्षों के दौरान भारत सेवक
SR No.010239
Book TitleJain Hindu Ek Samajik Drushtikona
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Mehta
PublisherKamal Pocket Books Delhi
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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