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________________ ( १३३ ) (दिगम्बर जैन मुनि) से भेंट हुई । उनका आर्शीवाद पाकर (श्री जिनेन्द्र अपना देव) श्री जैनधर्म अपना धर्म स्थिर कर उन्होंने राज्य व्यवस्था प्रारम्भ की। समरकेसरी सेनापति चामुण्डरायः-इनका जन्म ब्रह्म-क्षत्रिय कुल में हुआ था । यह बड़े शूरवीर और पराक्रमी थे। जैसे यह वीर थे, वैसे ही विद्वान एवं साहित्य के प्रेमी थे। इन्होंने स्वयं कई ग्रन्थ लिखे हैं । अन्त में सांसारिक सम्बन्ध त्याग कर अपना जीवन सफल किया। इन्होंने श्रवणवेल गोल में भद्रवाह स्वामी की विशाल मूर्ति स्थापित की थी। सेनापति गंगराज जैन:-होयसलवंशीय महाराज विष्णुवर्द्धन के राज्य में जैन-धर्मी गंगराज ने सेनापति का कार्य किया । महासामन्ताधिपति, महाप्रचण्ड दण्डनायक, जिन धर्म रत्न, यह गंगराज को उपाधियां मिलीं। कलचूरिवंशीय जैन राजा:-मध्य प्रान्त का सबसे बड़ा राजवंश कलचूरिवंश था । यह वंश प्रारम्भ से जैन धर्म का पोषक था, पांचवीं, छठवीं शताब्दी के अनेक पाण्ड्य और पख्लव शिला लेखों में उल्लेख है कि कलभ्र लोगों ने देश पर चढ़ाई की और चौल और पाण्ड्य राजारों को पराजय कर अपना राज्य स्थापित किया था। प्रोफेसर रामस्वामी अम्यंगर ने बेल्विकुडि के ताम्रपत्र तथा तमिल भाषा के 'पेरियपुराणम्' के आधार पर ये प्रमाणित किया है कि ये कलनवंशीय प्रतापी राजा जैन धर्म के पक्के अनुयायी थे। " राठौर राजा अमोघवर्ष जैन:-यह अमोघवर्प, मान्यखेट के राष्ट्रकूट (राठौड़), राजा गोविन्द का तृतीय पुत्र था । जैन देवेन्द्र ___ को दिये गये दान का उल्लेख. शक संवत् ७८२ (वि० स० ६२७; में स्वयं ने ताम्रपत्र पर किया है, यह दान .
SR No.010239
Book TitleJain Hindu Ek Samajik Drushtikona
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Mehta
PublisherKamal Pocket Books Delhi
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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