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________________ ( १३४ ) मोघवर्ष ने अपनी राजधानी मान्यखेट में दिया था। गुणभद्रसूरि कृत उत्तर पुराण में लिखा है कि अमोघवर्ष श्री जिनसेनाचार्य को जगत के मंगल रूप में मानता था तथा उनको प्रणाम कर अपने को पवित्र समझता था । यह राजा दिगम्बर जैन मत का अनुयायी था और जिनसैन का शिष्य था । . __ राजपूताने के जैन राठौड़ राजे:-वि० सं० १०५३ (ई० स० ६६७) का एक लेख बीजापुर से मिला है, यह स्थान जोधपुर राज्य के गोड़वाड़ परगने मे है । इसमें ह्यूडी के राठौड़ों की वंशावली इस प्रकार है-हरिवर्मा, विदग्धराज, मम्मट, धवल इसी धवल ने अपने दादा विदग्धराज के बनाये हुए जैन मन्दिर का जीर्णोद्धार कर ऋपभनाथ (जैन धर्म के प्रथम तीर्थन्कर) की मूर्ति की प्रतिष्ठा की थी। जोधपुर के राजवंश में जैन धर्म:-रायबहादुर महता विजय सिंह जी दीवान रियासत जोधपुर के जीवन चरित्र में लिखा है कि राठौड़ राव सीहोजी के पुत्र प्रायस्थान जी ने परगने मालानी के गांव खेड़ में सं० १२३७ में अपना राज्य स्थापित किया, उन के पुत्र घुहड़जी राज्य के उत्तराधिकारी हुए । इनके पुत्र रायपाल जी सं० १२८५ में सिंहासनारूढ़ हुए। राजपाल जी के चौथे पुत्र मोहन जी थे। इनके पुत्र भीमराज जी थे, उनके वंश के भीमावत राठौड़ कहलाते हैं । बाद में मोहन जो ने जैन धर्म के उपदेशक शिवसन शीश्वसर के उपदेश से जैन मत का अवलम्बन कर दूसरा विवाह प्रोसवाल जाति के श्री माल जीवणोतकाजू जी की कन्या से किया, जिससे संप्रति मैन जी उत्पन्न हुए । इनके वंश के मोहणोत श्रोसवाल कहलाते है । मोहन जी की २०वीं पीढ़ी में उत्पन्न रामचन्द्र जी ने एक जैन मन्दिर श्री चितामणि पार्श्वनाथ. जी का सं० १७०२ में
SR No.010239
Book TitleJain Hindu Ek Samajik Drushtikona
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatanchand Mehta
PublisherKamal Pocket Books Delhi
Publication Year
Total Pages179
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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